चहकते फिरते थे कभी अब बेघर बंजारे हैं
कभी पेड़ों पर हुआ करते थे हमारे घोसले
कंक्रीट के जंगल को विकास कहती है दुनियां
खा गए हरियाली को तरक़्क़ी के ढकोसले
कच्चे घरों के तापमान में परिवार रहता था
मकान पक्के हुए तो रिश्त हो गए खोखले
तुमने कमी नहीं छोड़ी हमने जीना नहीं छोड़ा
बनावटी हो गए तुम हम हिम्मत के हौसले
कभी पेड़ों पर हुआ करते थे ...
#सारस्वत
31082019