#
गुजर जाता है
आधा लम्हा आँखों में
आधा लम्हों को ढूंढ़ने में
सलामत हूँ , खैर से हूं ...
लगा हूँ ,
दोस्तों की खैर मांगने मेंⅱ
मिलकर भी ,
मिलते नहीं हो कभी
कैसे हो ,
खैरियत बताते नहीं कभी
गलती ,
हुई क्या कोई बड़ी ...
हम से दुआ मांगने मेंⅱ
नराज़गियां ,
तो चलती रहेंगी
जब तलक है ये ज़िंदगी
शिकायते ,
कम नहीं हो जायेंगी
वक्त ,
खुदसे दो घड़ी का ...
हमारे लिए मांगने मेंⅱ
तबियत ,
जानने का हक ...
हम भी नहीं रखते क्या
या फिर तुम ही ,
हो गए हो मंदिर के देवता
देता नहीं ,
जो प्रसाद कभी
सीढ़ियों पर मांगने मेंⅱ
#सारस्वत 04052020