खुद से मिलोगे ,तो ना जानोगे कितने हो अलग
अपनों से अलग और भीड़ में भी अलग थलग
रुआब के रुआब में तू , इतना भी मत उलझ
ऐसेतो हिसाब देने में ,बिखर जायेगा सो अलग
ये जो गुमान है ना , खुद ही में खुद के होने का
घमंड से कमतर , कहीं कुछ भी नहीं है अलग
श्याणपत्ति को समझदारी नहीं ,धूर्तता कहते हैं
चुप रहता है समाज , लानतें ईनाम देती है अलग
अमल बढ़ जाये तो अम्लपित्त मुँह से टपकता है
दंभ गगनचुम्बी हो तो ,बेशर्मी टपकती है अलग
बहुत सोचा मैंने , रिश्ते तुझसे बरकरार रक्खूँ
सुधार के पार निकल गए हो तो ,रहो तुम अलग
सवालों के जवाब तो , देने पड़ेंगे यारा तुझको भी
यहां पर ना सही ' वहां सही , वो बात है अलग
#सारस्वत 07102023