सोमवार, 26 जनवरी 2015

वन्देमातरम

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मैं लुप्त सरसवती ढूंढ रहा,
संगम त्रिवेणी को ढूंढ रहा,
जब देश धरम से ऊपर था,
जन सेवक देश पे मरता था ,
तब धोती टोपी ने मिलकर
अपनी करी बड़ी बडाई थी ,
सब भूल गए आज़ादी तब
मन क्रम वचन से आई थी ,
क्यों मशाल वो आखीर सुप्त हुई ?
क्यों ज़ाग्रती देश से लूप्त हुई ?
गर सजग देश कर पाउगा ,
तो राग देश ही गाऊँगा ,
फिर वही अलख जाऊँगा,
वही चिंगारी फिर से जगाऊँगा ,
आवाहान आज मैं करता हु,
सम्मान सब ही का करता हु ,
हे वीर पुरुष फिर जाग करो ,
तैयारी क्रांति की फिर से करो
तैयारी क्रांति की फिर से करो
तैयारी क्रांति की फिर से करो ...
जय हिँद जय भारत.
वन्देमातरम
#सारसवत
26012015 

सोमवार, 19 जनवरी 2015

उसने कहा












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उसने कहा दफ़ा हो जाओ ,
जाओ अपने घर जाओयहां, कोई नहीं है तुम्हारा
माँ बाप ने कहा वापस जाओ
बियाह दिया तुमकोघर, अब वही है तुम्हारा
कोख मेरी ना सिंदूर मेरा ,
जमीं मेरी ना आसमां मेराजहां, ये कैसा है तुम्हारा
पैरों में बेड़ियाँ समाज की ,
सर पर बोझ ईज्जत कायही, झूठ सच है तुम्हारा
लाये थे लाल जोड़ा डालकर ,
फूँक दो कैरोसिन डाल कर 'आख़िर, ये हक है तुम्हारा
#सारस्वत

19012015 

रविवार, 18 जनवरी 2015

डूबी देखि मैंने शाम [गीत]


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डूबी  … देखि  … मैंने शाम
डूबा देखा  … मैंने ज़ाम
डूब गया है  … आज  .. नाम भी
डूब गए हैं  … सब .. अरमान
डूबी  … देखि  …
छोडो भी  … जाने दो , लोगो को  … सोने दो
छोडो भी  … जाने दो , लोगो को  … सोने दो [ना]
ये जमीं आस्मां  … ये फ़िज़ा ये समां
ये नशा है कोई  … , कोई तो है ये नशा
क्या भला  … है  … ये इंसान
डूबी  … देखि  …
तू रुके  … मैं रुकूँ , तू हसे  … मैं हसूं
तू रुके  … मैं रुकूँ , तू हसे  … मैं हसूं [हाँ]
हमसफ़र की नज़र  …  चाहतों का सफ़र
ज़िन्दगी खेल है  खेलती है जिंदगी
आने  … को है  … फिर तूफ़ान
डूबी  … देखि  …
प्यार की … राहों में , यार की  … बाँहों में
प्यार की … राहों में , यार की  … बाँहों में
ख्वाइशों की डगर  … धड़कनों के नगर
साथ तेरे कौन है  … हर कोई मौन है
लूट गया  … दिल  … दे के जान
डूबी  … देखि  …
#सारस्वत
18101987 

शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

बैरी दुनियाँ [गीत]

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बैरी दुनियाँ  …  क्या कहे  ...
… बैरी दुनियाँ  …
तुझसे गिला  … कैसा भला  …
 … तूने मेरा  … क्या  … किया  …
बैरी दुनियाँ … क्या कहे ... बैरी दुनियाँ  …
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टूटे घर  … के कोने में …
टुटा दिल भी रो दिया  …
टुटा  … दिल भी  … रो दिया  …
मेरा ना कोई , ना मैं किसी का  …
जाने  … है  …  दुनियाँ  …
बैरी दुनियाँ  …  क्या कहे  ...
… बैरी दुनियाँ  …
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तूने मुझको  … छोड़ा ना छोड़ा  …
तेरी चंद एक यादों ने  …
तेरी  … चंद एक  … यादों ने  …
तू है जहाँ , मैं ना वहाँ  …
खो। … गई। … दुनियाँ  …
बैरी दुनियाँ  …  क्या कहे  ...
… बैरी दुनियाँ  …
#सारस्वत
24101988 

शनिवार, 10 जनवरी 2015

जब तलक सांसे

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जब तलक सांसे सांसों से सम्बद्ध
तब तक जीवन जीवन को उपलब्ध
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नाराजगी दिलों में अमरबेल सी
अहम के पतंगों से सुलगते शब्द
जब तलक सांसे ...

नजरिये से तंग बंद संकरी गलियाँ
रिस्ते हुऐ रिश्ते और मैं निशब्द
जब तलक सांसे ...

आये चलके आंसू पलकों से छलके
नाता टुटा नाभिखाता हुआ स्तब्ध
जब तलक सांसे ...

दीवारें दरारें अब कद को सवारेंगी
चलो निपटा लेते है किधर है प्रारब्ध
जब तलक सांसे ...

#सारस्वत
19102014

शुक्रवार, 9 जनवरी 2015

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आपने फिल्म देखी है
आप संतुष्ट हो अच्छी बात है
लेकिन मैं संतुष्ट नहीं हूँ क्योंकि
मुझे पता है
फिल्म के लिए कोई कहानी
किस प्रकार लिखी जाती है
किरदार कैसे घड़े जाते हैं
किस प्रकार दर्शक को भर्मित किया जाता है
किस प्रकार से किसी को टारगेट करने के लिए
घटनाओं को किधर को मोड़ना होता है
किसी को कहानी में कैसे बचना होता है
किसको किस प्रकार से हीरो
और दूसरे को विलेन बनाया जाता है
क्यूंकि ये सब मुझे अच्छे से पता है
इसलिये
PK मुझे बिलकुल भी पसंद नहीं आएगी
इसलिए
मैंने देखि नहीं है और ना ही देखना चाहूंगा
आस्था विश्वास परमात्मा जीसस खुदा
पूजा ईबादत सभी के अपने अपने हैं
अगर आप
खुद के धर्म पर खुल कर नहीं बोल सकते तो
ऐसे में आपको कोई हक नहीं बैठता
दूसरे के धर्म पर ऊँगली उठाओ
लेकिन ये बात
हिरानी & कम्पनी के ऊपर लागु नहीं होती
क्योंकि उनका धर्म पैसा है और कुछ नहीं
और
हिन्दू हिन्दू को हिन्दू नहीं जाती से पुकारता है
आज भी जाती की पूँछ को हटाना नहीं जानता
तो ये सब तो होना ही है
इसमें रोने चिल्लाने समझने से भी क्या होगा
लेकिन
कितना भी जातीयों में बटकर
दिखा लो खुद को अलग अलग होकर
गलती हम सभी हिन्दुओं की है तो
भुगतना भी हम सभी को होगा मिल कर
#सारस्वत
09012015 

गुरुवार, 1 जनवरी 2015

बारिश की सरगम प्रभात















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भोर ने पूछा  …
प्रभात से इशारों के साथ में ,
सूरज नहीं आया आज धुप के साथ में
कोहरे की चादर में  …
लिपटा ... सिपटा ...बमुश्किल सा ,
प्रभात !!!
ओस की बूंदों सा मुस्कुराया
सर्दी का मौसम  ...
और , ये मदमस्त हवायें  ...
बुँदे   ...
टपक रही हैं ... रुनझुन फर्श पर ,
बारिश ने नहालाया है ...
आज तो सारा शहर ,
सांसों को सोने दो
ख्वाबों  के कारवाँ , साये के साथ में
सूरज को  ...
सुनाने दो दिलों की दास्तान ,
रहने दो  ... छाया के साथ में  ,
भौर मुस्कुराई ...
दिन के दरवाजे तक आई ...
मन ही मन बड़बड़ाई ...
ऐरी बावरी !!!
उजाले को ही उठा दे कोई ....
मगर  …
रौशनी ने अनसुनी कर दी , ये बोल कर ...
मुझे सोना है  , उजाले के साथ में ...
और वो  ...
आँखें बंद कर लेटी रही ,
अपनी मोहब्बत के साथ में  ...
प्रियतम की स्निग्ध सांसें ,
महसूस करती रही खुली बाँहों में ...
तूफान  ...
थमने का नाम नहीं ले रहा ...
बारिश में नहाया है झमाझम शहर  ...
बूंदें टपक रही हैं फर्श पर ...
सूरज भी दूर तक नहीं आता नजर  ...
सूरज भी  ...
दूर तक नहीं आता नजर
शुभदिनसुन्दरहो
#सारस्वत
02012015

नया साल आया था , एक ही रात में









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आँख खुली  ...
सामने नया साल खड़ा था
नये दिन , सुरज के साथ में ...
मैं भी मुस्कुराया  , बच्चो की तरहा और ,
बधाई दी  ... इसी ख़ुशी के साथ में ,
नया साल आ गया , एक ही रात में
१-
अब मैं सोचने लगा
मन आत्ममंथन करने लगा
दुनियाँ बदल गई होगी
नज़ारा बदल गया होगा
सुरज भी शर्तिया !!!
आज पश्चिम से उगा होगा  ...
चाँद से खुल कर इश्क लड़ाया होगा
तू सोता रहा नालायक !!!
छोड़ दी तूने ब्रेकिंग न्यूज़ , आलस के साथ में
नया साल आ गया , एक ही रात में
२-
जमाने से पिछड़ चूका हूँ , अब एहसास जाग चुका था
लेकिन ,
कितना आगे है  ... मुझसे पड़ोसी मेरा ...
ये जानना अब  ... जरूरी हो चूका था
स्थिति विकट थी  … बेचैनी समक्ष थी  …
संकट की ऐसी घडी में  ... मन !!!
सलाहकार बन कर प्रकट हुआ  ...
बोला  …
देख तो जरा  … खिड़की खोल तो जरा  …
पता तो कर ...
कैसे , दुश्मन जमाना हो गया ,  एक ही रात में
नया साल आ गया , एक ही रात में
३-
पहले खुद को कोसा  … बेबसी के साथ में  ...
फिर दरवाजा खोला  … इस उम्मीद के साथ में  ...
कुछ न बदला हो  … 'भगवान' चांद रात में  ...
देख कर  …
भक्क से   'आँखे, खुली की खुली रह गई  …
सामने उम्मीदें खड़ी थी  ... फटेहाल !!!
 कल की तरहा से ही  …
कुछ भी तो ना बदला था  …
नये साल , नये दिन के साथ में  …
नया साल आ गया , एक ही रात में
४-
इतने में  …
हवा का एक  … फालतू सा झोंका , हस्ता हुआ आया  …
चुम्बन लिया मोहब्बत का  उसने  … नई रौशनी के साथ में
खिलखिलाया और दाँत फाड़कर बोला
रोज सुबहा बदलती थी शाम में  … दिन बदलता था रात में …
और  … रात फिर दिन के साथ में  …
यही हुआ है आज भी  … कुछ नया नहीं हुआ
हाँ !!!
आज  … कलण्डर बदला है  … तेरे घर की दिवार का  …
हालत वही है  … घर गली शहर  …  खासोआम का ...
और मैं इस सोच में डूब गया  …
आज मैं  ... कुछ और भी मांगता तो  …
शायद  ... वो भी सच हो जाना था  ...आज रात में …
नया साल आया था , एक ही रात में
नया साल आया था  ...
एक ही रात में  ...
#सारस्वत
01012014