बुधवार, 5 सितंबर 2018

सादर प्रणाम ...


आज बच्चे हमारे ऊपर हैरत करते हुऐ जरूर हस सकते  है कि ,
हमारा भी बचपन कबूतर खरगोश गमला घडी पढ़कर बड़ा हुआ है
क से कबूतर , ख से खरगोश , ग से गमला , घ से घडी
स्कूल से निकलते हुऐ सबका एक साथ में चिल्लाते हुऐ जाना
किसी नारे जैसा सच्चा लगता था , यही सच है हमारे बचपन का
और दो इकम दो , दो दूनी चार का पहाड़ा तो जब कक्षा में गूंजता
सभी बच्चो में राष्ट्रिय गीत के जैसा जोशीला एहसास कराता था
अरे हां !! बीस के पहाड़े तक याद करने में कितना थप्पड़ खाये याद नहीं
हमारे पास में तब ना चॉक होती थी और ना ही खड़िया होती थी
हमारी दोपहर रोज़ तख्ती पर मुल्तानी का घस्सा लगाने में गुजरती थी
लिखने में अगर मुश्किल आती तो बढ़िया वाली डांट लगती थी
कभी सबक सुनाने में देरी होती तो फिर लठोरी से नपाई भी होती थी
पिटाई होने पर आजकल की तरह घर से कोई नहीं जाता था स्कुल
और फिर हम सभी आगे की क्लास में बढ़ गए , मास्टर जी उसी क्लास में रह गए
और एक दिन सुना रिटायर हो गए , एक एक  करके फिर सभी दोस्त निकलने लगे
कोई इंजीनियरिंग करने चला गया , कोई डाक्टरी , किसी का नंबर बैंक में आ गया
तो किसी ने पिता की दुकान को पर बैठना शुरू किया और कोई अध्यापक बन गया
हमारा बचपन जो कायदा पहाड़ा से शुरू हुआ  ... बाद में उसी की बदौलत
कोई कबूतर बन गया कोई खरगोश आज जो भी हैं आधे अधूरे सफल असफल
सभी कुछ प्राथमिक विद्यालय अध्यापको की पढाई प्यार और पिटाई की बदौलत
उनके गुस्से में असीम प्यार होता था  ... आज भी वे यादें ह्रदय गति को ऊर्जा देती हैं
अंत में  ... प्राथमिक विद्यालय के सभी अध्यापको को  ... सादर प्रणाम
#सारस्वत 05092018