सोमवार, 16 दिसंबर 2013

बेजुबान जात मेरी

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जमीन की तलाश थी ,
आसमान चाहने लगा ,
ख्वाइशें डरने लगी ,
अरमान बिखरने लगा ,
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उमर जो बढने लगी ,
जीना मुश्किल हुआ ,
फूल कलियाँ बाग़ की ,
भवरा आजमाने लगा ,
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निगाहें नोचने लगी ,
अब रोज़ जिस्म मेरा ,
तितलियों की जान पे ,
सैयाद पैहरा देने लगा ,
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बेजुबान जात मेरी ,
बस यही कुसूर है मेरा ,
क्यों गोश्त के बाज़ार में ,
दाम मेरा लगने लगा ,
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सारस्वत
16122013

रविवार, 15 दिसंबर 2013

साँसो के मोहताज

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साथ ना दे जिस्म का साँस अगर दिल घूट के मर जायेगा
जीने मरने का नगमा फिर भला कोई कैसे गुनगुनाएगा
सोचा ना था इजहार ऐ मोहब्बत का असर यूँ भी होता है
सुर्ख रंग खुद ब खुद शरमा के यूँ चेहरे पे ही उतर आएगा
लैहरा के आई अब के दिल की बगिया में इश्क की फ़सल
दिल कि बस्ती में फिर से कोई अपना ही आग लगाएगा
जो धड़कता है बेचैन सा होकर सीने में बता दे दुनियां को
बेजुबां इश्क रहा अगर तो किसी रोज़ गूँगा ही मर जायेगा
जिन्दा रिश्ते रगो में दौड़ते हैं मरने के बाद भी दुनियाँ में
साँसो के मोहताज का नगमा एक रोज़ गुनगुनाया जायेगा
#सारस्वत
15122013 

बुधवार, 11 दिसंबर 2013

अल्फाज़ मुझ से हैं

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क्या लेना देना मुझे शब्दो कि बाजीगरी से
मेरे जज्बात मेरे हैं यही काफी है मेरे लिए

जो महसूस करता हूँ वही कुछ लिख देता हूँ
अब जरूरी नही सब को समझ आ ही जाये
अल्फाज़ मुझ से हैं यही काफी है मेरे लिए
#सारस्वत
11122013 

गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

जीवनरूपी पाठशाला में

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ज्ञान आंकलन "परिशिष्ट " के
विशिष्ट "प्रतिनिधि" के समक्ष

शब्दज्ञान "परीक्षण" में
"प्रतिशोध" की उत्पत्ति
शोषण के प्रतिस्वर क्रोध से होती है
समाज में
जाति रंग अथवा
जीवनयापन शैली का
अपमान ना हो
इसलिए
निगरानी "निरीक्षण" की
"विशेष" आवश्यकता प्रतिक्षण रहती है
सम्मान की अभिलाषा तो
"गर्दन" पर टिके प्रत्येक मस्तिष्क का
जन्मजात अधिकार है
दिपावली का "दीया" यही लौ जगाता है
मन अभिव्यक्ति
विचार कल्पनाये
शाब्दिक प्रारूप "प्रतिबिम्ब"
शैक्षिक अनुसंधान
शिक्षण "प्रशिक्षण"
जीवनरूपी पाठशाला में
निरंतर चलायमान रहे
इसके लिए आवश्यक है
चेतना पटल के तोरणद्वार
जिज्ञासु पुष्प माला एवं
चिंतन "आम्रपल्लव" से
"पुष्पित" रहें
अंतर्मन जागृत न हो तो
मायारूपी असुर "हिरण्याक्ष"
ज्ञानवान को भी मूढ़ बना देता है
अतः
आवश्यक है
जीवन कलश के ह्रदय क्षेत्र में
धर्मसंगत सांस्कृतिक ज्योतिर्पुंज
निरंतर प्रजव्लित रहे
#सारस्वत
05122013 

बुधवार, 4 दिसंबर 2013

रिश्तों में ईमानदारी















"रिश्तों में ईमानदारी"
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जैसे निखालिस रेत से महल खड़े नही होते
वैसे ही झूट की भी इमारत खड़ी नही होती
रिश्तों में ईमानदारी की बुनियाद जरूरी है
बेईमानी कि नाव कभी भी पार नही होती
#सारस्वत
04122013 

छुपा है चाँद तो नजर आ ही जायेगा

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छुपा है चाँद तो नजर आ ही जायेगा 
आखिर कब तलक वो दूर रैह पायेगा 
छुपा है चाँद तो 
मर के भी ज़िंदा रहे वही वही वही इश्क 
ज़िंदा रैहने को झोली फैला के आएगा 
प्यार के आसमान में बिखरी है खुशबु 
इस कैद से बच के अब ना रैह पायेगा 
छुपा है चाँद तो 
गरूर ऐ इश्क बाज़ार में बिकता नहीं 
फासला कितना भी हो लौट के आएगा 
यादे समंदर में डुबकियां ना लगा ऐसे 
दिल का दरवाजा सुबकता रैह जायेगा 
छुपा है चाँद तो 
सजाया है सांसों में बंदगी की तरहा से 
जिंदगी की सजा से वो बच ना पायेगा 
पैमाने से भरी दोनों आँखों की कसम 
ज़माना देखकर मंज़र हैरत ही पायेगा 
छुपा है चाँद तो 
#सारस्वत 
04122013


सोमवार, 2 दिसंबर 2013

वो भोपाल गैस त्रासदी की रात

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वो दो और तीन दिसंबर 1984 की रात
वो भोपाल गैस त्रासदी की रात
वो मौत के ताण्डव कि रात
वो यूनियन कार्बाइड कि रात
कितनी भयानक कितनी दर्दनाक
वो औद्योगिक त्रासदी कि रात
जो उस रात सोये और सोये रैह गए
भगवान अगर तू सुन रहा है आज कि रात
उन मासूम आत्माओं को शांति दो
आज कि रात
#सारस्वत
02122013