शनिवार, 29 दिसंबर 2018

# उसने पूछा ... अब क्यों लाईन में खड़ा है शहर मैंने कहा ... ये सत्ता बदल के बाद का है कहर उसने पूछा ... क्या ? चौकीदार चौर था यहां भी अजी नहीं ... अफ़वाह पे फ़िदा हो गया था शहर
29122018

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018

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दिलों के बीच ... नफरत का ज़हर बोने वालो  
बू - खुशबू ऐ मोहब्बत  ... फैलाओ तो जाने 
गंजी आँखों में ख़ंजर  ... तोबा शिकन तुम्हारे 
कभी , काज़ल ख़्याल का ... लगाओ तो जाने 
जलाकर कंदील ... साज़िश , नई रोज़ करने वालो 
महफ़िल , कभी मोहब्बत की ... सजाओ तो जाने  
फिर वही !! वफ़ा के नाम पर , बेवफ़ा की बातें 
कभी क़िस्सा ऐ एतबार  ... सुनाओ तो जाने 
जब से देखा है  ... चाहत की ताड़ी पिये बैठा हूँ 
आशिक़ हूँ , गैर नहीं ... गले से लगाओ तो जाने
#सारस्वत 
18072017

गुरुवार, 20 दिसंबर 2018

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तुम कोई काम करोगे या नहीं मुझे आज बता दो  ... 
सुमन ने कमरे में घुसते हुये अपने पति उदयवीर से कहा 
सुबह सुबह उल्हना शुरू हो गया तुम्हारा  ... 
थोड़ा रुककर उदयवीर ने बोलना शुरू किया  ... 
तुम और तुम्हारा बेटा रात ही तो बोल रहे थे ,
मैं किसी काम को ठीक से नहीं करता हूँ तो ...
अब किस काम की उम्मीद रखती हो मुझसे  ... 
दो महीने से ऊपर हो गया कमरे का शीशा टूटे हुए , 
रोज कहती हूँ मगर मजाल है जो सुनाई पड़ता हो आपको 
अरे मैं भी तो तुम्हारे सुपुत्र को रोज़ बोलता हूँ साथ चले मेरे खरीदकर लाऊंगा  ... 
वह ही नहीं चलता तो उसमें मेरी गलती नहीं है 
वो नहीं जाता तो तुम चले जाओ ना .. तुम क्यों बहाने ढूंढ़ते हो काम ना करने के 
किस लिए जाऊं ... 
फिर जो तुम मंहगा खरीद कर लाये का ताना देती हो उसका क्या 
इसी बहस के साथ सुमन उदयवीर को 500 रूपये देकर 2 शीशे लाने को कहती है 
उदयवीर सबसे पहले उस दुकानदार के पास के पास जाता है शीशों का साइज़ लेकर क्योंकि 2 साल पहले उसी की दुकान से शीशे आये थे मगर उस के पास में यलो कलर वाले शीशे नहीं मिलते तो वह उदयवीर  को दूसरी दुकान का पता देता है जो की वहां से काफी दूर थी तब रिक्शा से उदयवीर जाता है मगर वह भी सेम कलर नहीं मिलता तब उदयवीर पैदल ही कुछ दूर जाता है तो उदयवीर को अपना बेटा दिखाई देता है वह उससे शीशे लाने के लिए साथ चलने को बोलता है मगर बेटा कॉलेज से थककर आने की बात बोलके मना करदेता है , अब उदयवीर खुद ही शहर में सेम कलर का शीशा ढूंढ़ता है कभी रिक्शा तो कभी पैदल चलता है जिसमे उसे तीन चार घंटे लगते हैं , और आखिर में उदयवीर जब घर में आता है शीशे का हिसाब देने लगता है तब एकबार फिर सुनने को मिलता है ऐसा किस की दुकान से खरीद लाये इतना मॅंहगा खरीदकर लाने की क्या जरुरत थी  ... और बेटा हिसाब लगाने के लिए कैलकुलेटर लेकर बैठ जाता है  ... ये सब आज पहली बार नहीं हो रहा था उदयवीर के साथ में पहले भी कई बार होता आया था पचपन की उम्र के पार उदयवीर की जब से नौकरी छूटी थी  तब से बेरोजगार उदयवीर के साथ में यही सब होता आ रहा था अब दूकानदार से पूछताछ करने की बात हो रही थी इसीकी वजह से उसने घर के काम करने बंद कर दिए थे आज भी वही सब हो रहा था। ... बेरोजगार आदमी की घर में कुत्ते बराबर औकात नहीं रहती यह उदयवीर को अच्छे से समझ आ गया था  ... बस इस समस्या से बहार निकलने का रास्ता समझ नहीं आ रहा था 
#सारस्वत 
20122018  

मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

विजय ...

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यादों में ज़िंदा हो , जिंदगी सा नज़र आते क्यों नहीं हो 
धड़कनों में रहते हो , सामने नज़र आते क्यों नहीं हो 
बहुत दिन हो गये , साथ बैठ कर बात  नहीं की तूने  
नाराज़ हो !! नाराज़गी सही , बात करते क्यों नहीं हो 
जागता हूँ अब रातों को , नींद मुझको  भी आती नहीं 
सितारों में ढूंढ़ती हैं ऑंखें , दिखाई देते क्यों नहीं हो 
उदासी पसरी है देखलो , बंज़र हो गया घर का मंज़र 
बन के झोंका हवा का , तुम लौट आते क्यों नहीं हो 
#सारस्वत 
18122018 

रविवार, 16 दिसंबर 2018

जीत की हैट्रिक
















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बहुत खूब , हैट्रिक लगाई है  ... जीत का समाचार आ गया
बधाई लो दो , फाइनल से पहले  ... चुनाव मज़ेदार आ गया
मत पूछो यारो , चांदी के चमचों की ...फिर से मौज आ गई
CM से पहले , छत्तीसगड़िया में ...कारसेवा स्कैम आ गया
जोर , लगाया था इसबार ...अज़ब MP के गज़ब नोटवीरो ने
कमल हारेगा , कमल को हराएंगे...शाशन कमल का आ गया
दिल्ली तक पंहुची थी ...जो किसान रैली मदसौर की हार गई
लगा नारा जहां पाकिस्तान का ,राजिस्थान जीतकर आ गया
तिलक जनेऊ मंदिरपंडित गौत्र पूजा ... किये जंतरमंतर सारे
कोई मत कहना अब पप्पू को पप्पू , पप्पू जीत कर आ गया
#सारस्वत
16122018 

सोमवार, 12 नवंबर 2018

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अगर मिल जाये विधायकी .....
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अगर मिल जाये विधायकी , बकैती छोड़ देंगें हम
बकैती छोड़ देंगें हम , डकैती छोड़ देंगें हम
अगर मिल जाये विधायकी , डकैती छोड़ देंगें हम
हमारी सूरतों की आदि
रही जनता ये सारी है
शक्ल से मोर लगता हूँ
ये गलती तुम्हारी है
चोरी पेशा पुराना है , ये पेशा छोड़ देंगें हम
अगर मिल जाये विधायकी , डकैती छोड़ देंगें हम
ना देखो लकीरों को
खुनी पंजें पुराने हैं
खाके चूहें पूरे नौसौ
अभी हमने डकारे हैं
यहां काबिल हमी यारो , तुमसे वोट लेंगें हम
अगर मिल जाये विधायकी , डकैती छोड़ देंगें हम
मैं गुंडा था मैं गुंडा हूँ
शहर वाले सब जानें हैं
नहीं भरता दलाली से पेट
ये दुश्मन भी मानें हैं
विधायक तुम बना देना , एक टेंडर छोड़ देंगे हम
अगर मिल जाये विधायकी , डकैती छोड़ देंगें हम
#सारस्वत
12112018 

रविवार, 11 नवंबर 2018

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उलटे सीधे तिरछे मिरछे , 
झटकोई रुट करा लिए हमने
आंडेबांडे कूद फांदकर , 
कुछ पोज़ खास बना लिए हमने 

तरतीब से चल रहा हो सब कुछ ,
जिंदगी में जरूरी नहीं 
बस !! सेल्फी मोड़ में ही ,
कुछ तरक़ीब बना लिए हमने 

हस कर कहता था अक्सर , 
हस कर के दिखालावो जरा
आईने की मांग बहुत पुरानी , 
आज पूरी कर दीए हमने 

वैसे तो वक्त मिलता नहीं , 
इस जिंदगी में जिंदगी के लिए 
फिर भी कुछ पल खास , 
इस तरहा से चुरा ही लिए हमने
#सारस्वत 
11112018 

शुक्रवार, 19 अक्तूबर 2018


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हक़ीक़त की नसीहत से जंग छिड़ी है 
भरोसे और यक़ीन में बेचैन्गी बढ़ी है 

झूठ के घोड़े इस कदर बेलगाम हो गये 
सच की बुनियाद की चूलें हिली पड़ी हैं 

अगर हूँ गलत करो झूठा साबित मुझको 
बदपरहेज़ लब्जों से मारो गोली मुझको 

19102018

बुधवार, 5 सितंबर 2018

सादर प्रणाम ...


आज बच्चे हमारे ऊपर हैरत करते हुऐ जरूर हस सकते  है कि ,
हमारा भी बचपन कबूतर खरगोश गमला घडी पढ़कर बड़ा हुआ है
क से कबूतर , ख से खरगोश , ग से गमला , घ से घडी
स्कूल से निकलते हुऐ सबका एक साथ में चिल्लाते हुऐ जाना
किसी नारे जैसा सच्चा लगता था , यही सच है हमारे बचपन का
और दो इकम दो , दो दूनी चार का पहाड़ा तो जब कक्षा में गूंजता
सभी बच्चो में राष्ट्रिय गीत के जैसा जोशीला एहसास कराता था
अरे हां !! बीस के पहाड़े तक याद करने में कितना थप्पड़ खाये याद नहीं
हमारे पास में तब ना चॉक होती थी और ना ही खड़िया होती थी
हमारी दोपहर रोज़ तख्ती पर मुल्तानी का घस्सा लगाने में गुजरती थी
लिखने में अगर मुश्किल आती तो बढ़िया वाली डांट लगती थी
कभी सबक सुनाने में देरी होती तो फिर लठोरी से नपाई भी होती थी
पिटाई होने पर आजकल की तरह घर से कोई नहीं जाता था स्कुल
और फिर हम सभी आगे की क्लास में बढ़ गए , मास्टर जी उसी क्लास में रह गए
और एक दिन सुना रिटायर हो गए , एक एक  करके फिर सभी दोस्त निकलने लगे
कोई इंजीनियरिंग करने चला गया , कोई डाक्टरी , किसी का नंबर बैंक में आ गया
तो किसी ने पिता की दुकान को पर बैठना शुरू किया और कोई अध्यापक बन गया
हमारा बचपन जो कायदा पहाड़ा से शुरू हुआ  ... बाद में उसी की बदौलत
कोई कबूतर बन गया कोई खरगोश आज जो भी हैं आधे अधूरे सफल असफल
सभी कुछ प्राथमिक विद्यालय अध्यापको की पढाई प्यार और पिटाई की बदौलत
उनके गुस्से में असीम प्यार होता था  ... आज भी वे यादें ह्रदय गति को ऊर्जा देती हैं
अंत में  ... प्राथमिक विद्यालय के सभी अध्यापको को  ... सादर प्रणाम
#सारस्वत 05092018 

शनिवार, 25 अगस्त 2018

कल रक्षाबंधन है ...

शाम को घर लौटते हुए 
अचानक रजत की दुकान पर नज़र ठहर गई 
कदम रुक गए याद आया , 

कल रक्षाबंधन है भाई बहन का त्यौहार 
सुबह ही बेटी ने याद दिलाने वाले अंदाज़ में कहा था 
और उसने अपने भाइयों के लिए राखी लाने के लिए बोला था 

रजत से दोनों बेटो के लिए राखी खरीदकर 
थके कदमों के साथ घर में दाखिल हुआ 
बेटी ने दौड़ कर पानी का गिलास थमाया 
और मुस्कुराते हुये सवालिया निगाहों से मुझे देखने लगी 

मैंने भी मुस्कुराते हुए 
उसके हाथ में राखी का लिफाफा रख दिया , 
लिफाफे को लेकर आंगन की चिरईया 
अपने भाइयों की तरफ दौड़ी 
मैं कपडे बदलने लगा , 
बराबर के कमरे से 
तीनो बच्चो की खिलखिलाकर हसने की आवाज आ रही थी 
उनकी आवाजे आत्मा को सुकून दे रही थी 
अंतर्मन की उदासी को दूर कर  रही थी 

अचानक से आवाज़े ख़ामोशी में तब्दील हो गई 
जब छोटे ने पूछा 
पिता जी की राखी किधर है 
और जवाब उसकी माँ ने दिया 
तुम्हारे पिताजी की बहने राखी भेजती कब हैं  ... 

और मुझे याद आने लगा 
राखी का वो मनहूस दिन 
जब पिताजी ने आखरी साँस ली थी !!!!!
#सारस्वत 
25082018 

सोमवार, 20 अगस्त 2018

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सिलसिला मुलाकात का , यूँ हो रहा    ... जवां दिन बदिन 
मोहब्बत पहली नज़र की , इज़हार रोज़ का  ... रातो दिन 
#सारस्वत 
20082018 

गुरुवार, 16 अगस्त 2018

अटल ...

#सादर_नमन 
जिद्द का नाम होता है है अटल 
दृढ़ का नाम होता है अटल 
संकल्प का नाम होता है अटल 
निर्णय का नाम होता है अटल 
न झुकने वाला हठीला भी अटल
मजबूत इरादे वाला भी है अटल
एकम सच्चा नाम होता है अटल
विचार भी अभिमान भी अटल
माँ भारती का लाल है अटल
अनिवार्य स्थिर अचल हरपल अटल
साहसी बहादुर अडिग अमरत्व अटल
चलायमान समय सवमसंभू है अटल
काल के कपाल पर मोक्ष का आख्यान है
जो टाले ना टले वह मृत्यु होती है अटल
अटल मरता नहीं विश्वास है अटल
#सारस्वत
16082018

शुक्रवार, 20 जुलाई 2018

कारवां ...


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बगैर मेरे भी चलता रहेगा ज़माने का कारवां 
रुक गया  तो गया समझो उड़ा देगा कारवां 

हिस्सा हूँ  भीड़ का इसी भीड़ में खो जाऊंगा 
रौंद डालेंगे अपने करीबी लश्कर है कारवां 

मुड़कर देखने का रिवाज़ नहीं है दुनियां का 
निशाने पर  हम तुम सभी मज़हब है कारवां 

यक़ीन भरोसा एतबार लब्ज़ बेमानी हो गए 
मतलबों की दुनिया ये प्यारे मतलबी है कारवां 

वक्त की जद में है सब बस इतना समझले 
बाद मेरे भी चलता रहेगा ज़माने का कारवां 
#सारस्वत
20072018 

बुधवार, 13 जून 2018

यूँ ही ...

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कुछ कह रहा हूँ तुमसे  ... सुनो बस यूँ ही
पलकों की ओढनी से  , वो मुस्कुराई दी यूँही 
समय रुक सा गया , नैनो में उलझ कर के 
रुको !! जरा सा तुमभी ठहरो कुछ देर यूँ ही 
एक तुम्हारे दम पर ही , जीता हूँ हमदम 
ना होती तो , हार जाता सब कुछ यूँ ही 
सुनो जब जब कहता हूँ ... सुना है कुछ 
 बोलता है डर अंदर का , तब तब  यूँही 
खुद से अकेले में ... कुछ भी तो नहीं हूँ 
अकेला एक मैं नहीं , तुम भी हो यूँ ही 
आस उम्मीद ... अपनेपन का एहसास 
लौ विश्वास की , जलती रहती है यूँ ही 
समझ रही हो ना ... क्या कुछ कह रहा हूँ 
अभी पूछा भी ना था , वो मुस्कुराई दी यूँही 
#सारस्वत 
13062018

बुधवार, 6 जून 2018

आरजू ...

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आरजू हसरत आहें , तमन्ना मुराद उम्मीद 


सभी कुछ निचुड़ा हैं ' यारा , तेरे जिक्र के आगे 


आज भी हैं बरकरार ... सब कुछ ज्यूँ के त्यूं


गिला शिकवा शिकायतें ... मोहब्बत के धागे 


वस्ल की आरजू लिए ... हालेदिल तमाम 


जाने कितने !!! खत लिख डाले  बिना नागे 


ख्वाइश के हाथों हुए हैं ... अरमान कई जवां 


लगे मेंहदी अरमानों को ... तो माने भाग जागे 


#सारस्वत
06062018

बुधवार, 30 मई 2018

यादें ...




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यादों से बेहतर यादों से बदतर कोई बंदिश नहीं होती 
बजने लगती है तो गीत गज़ल से कमतर नहीं होती 
जब बरसती हैं तो बह निकलता है आबसार दरिया का 
आके बैठ जाता है वक्त चुपके से कोई आहट नहीं होती 
छू लेना चाहता है फिर हर एक चीज जी जी में आता है 
औ' जो मुह को आता है उसकी कोई मंजिल नहीं होती 
चाहे वो शहर ऐ यार का गम हों या फिर हों ख़ुशी उसकी 
छलकती है पलकों से तो कमी कोई नमी की नहीं होती 
मायूसी हो या हो इत्मीनान , वफ़ा हों या फिर बेवफाई
ख़्वाब हक़ीक़त झूठ और सच हद की सरहद नहीं होती 
निशांनात खंजर के चमकते हैं यूँ रूह पर नश्तर बनके  
इश्क की बिदाई में तन्हाई होकर भी तन्हा नहीं होती 
रात भर साथ बरसात सा मेला लगा रहता है यादों का 
सुभह की रोनकों में दफन हादसों की गिनाई नहीं होती 
#सारस्वत 
30052018