बुधवार, 30 मई 2018

यादें ...




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यादों से बेहतर यादों से बदतर कोई बंदिश नहीं होती 
बजने लगती है तो गीत गज़ल से कमतर नहीं होती 
जब बरसती हैं तो बह निकलता है आबसार दरिया का 
आके बैठ जाता है वक्त चुपके से कोई आहट नहीं होती 
छू लेना चाहता है फिर हर एक चीज जी जी में आता है 
औ' जो मुह को आता है उसकी कोई मंजिल नहीं होती 
चाहे वो शहर ऐ यार का गम हों या फिर हों ख़ुशी उसकी 
छलकती है पलकों से तो कमी कोई नमी की नहीं होती 
मायूसी हो या हो इत्मीनान , वफ़ा हों या फिर बेवफाई
ख़्वाब हक़ीक़त झूठ और सच हद की सरहद नहीं होती 
निशांनात खंजर के चमकते हैं यूँ रूह पर नश्तर बनके  
इश्क की बिदाई में तन्हाई होकर भी तन्हा नहीं होती 
रात भर साथ बरसात सा मेला लगा रहता है यादों का 
सुभह की रोनकों में दफन हादसों की गिनाई नहीं होती 
#सारस्वत 
30052018

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