शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

साथ चलेंगे ...

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साथ चले हैं साथिया  … साथ चलेंगे
रिश्ता जन्म जन्म का   … साथ चलेंगे
 
जब से जाना है अपना तुमको माना है ,
दरिया से सागर तक … साथ चलेंगे

थम कर हाथ विश्वास के साथ में
एहसास की धारा में  … साथ चलेंगे

घुल जाओ मिल जाओ सांसों में यूँ ही
प्रेम प्यार पियतम स्पर्श  … साथ चलेंगे

चाँद के साथ में तारो जड़ी रात में ,
चलो चाँद को देखने … साथ चलेंगे

#सारस्वत
11102014

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

प्राणिमात्र का धर्म

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धर्म की जय हो  ...
अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भावना हो  ...
विश्व का कल्याण हो
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यह वह ब्रह्म सूत्र है  …
जो धर्म की व्याख्या करता है
प्राणिमात्र का अर्थ हुआ  …
अंतिम व्यक्ति तक सभी में सद्भाव का भाव
जिसका मतलब हुआ  …
ऊंच नीच छोटा बड़ा अपना परया कुछ नहीं
सभी के लिए सभी की सोच में …
सभी के ह्रदय में अंतर्मन में मानवीय सोच रखना
चराचर संसार के  …
समस्त जीव निर्जीव के कल्याण की कामना करना
मन के मनके का यही धर्म है …
मन के अवयव मानव का यही धर्म मानवीय धर्म हैं
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जो भी धर्म इस रस्ते चलेगा  …
सैदेव समान भाव से युगों युगों तक चलता चलेगा
क्योंकि इस भावना में  …
विस्तारवादी कुत्सित कुटिल इच्छाएं नहीं होती
जरूरी नहीं के यह सुत्र  …
केवल हिन्दू सनातनी  वैदिक ही अपना सकते हैं
जब भी  …
जो भी सभ्यता इस गुण सूत्र को अपनाएगी
समाज के पुनुरुत्थान के लिये  …
मानव मात्र की चिंता में संलग्न हो जाएगी
स्वतः
वैदिक सनातनी हो जायेगा
धर्म की जय हो  ...
विश्व का कल्याण हो
हरि बोल
#सारस्वत
23042015 

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

लिखना होगा ...

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किस्से कहानियों को अब नए सिरे से लिखना होगा
मर्द जात की नामर्दी को स्वर्णाक्षर में लिखना होगा

औरत आज भी अबला है मंगल विजयी भारत में
बहन का रक्षक भाई नहीं आज का सच लिखना होगा

कभी कोख में मार डालते कभी दहेज की बलिवेदी पर
नहीं सुरक्षित बहु बेटियां साथ गर्व के लिखना होगा

भूलाना होगा पर्व भैया दूज रक्षा बंधन त्योहारों को
करो भ्रूण बेटी की हत्या ये कानून में लिखना होगा

बहुत पुराना राग तुम्हारा नारी नारी की दुश्मन है
बाप बेटी के हत्यारे हैं बेटे को घमंड ये लिखना होगा
#सारस्वत
26112014

शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

तुम ही बतादो ना ...

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मेरे हाथ में आज  ,
कागज़ और क़लम है  ...
'मगर,
नहीं मालूम क्या लिखूं
वो , जो  ...
तुम्हारी आँखों में अक्सर मैं देखता हूँ
या फिर वह  ,
जो शायद तुम  ...
मेरी निगाहों में पढ़ लेती होंगी
जी चाहता है ,
उन तमाम रातों का बयाँ करूँ  ...
जिन्होंने ,
बंद पलकों में  ...
दस्तक  देकर जगाया
या फिर जब ,
तारों की वादियों में मुझे  ...
एक चाँद और नज़र आया
सपनों की हक़ीक़त , बुनियाद ढूंढ़ती रही  ...
ख़्वाबों में मुलाक़ात , ज्यूँ ज्यूँ बढ़ती रही ...
या , मैं करूँ ज़िक्र  ...
उन चंद मुलाकातों का  ...
जिनकी बस यादें अधिक हैं
वो हसी ,
जो ओठों पर थिरकती है  ...
या फिर ,
वो ख़ुशी जो आँखों से छलकती है
और इन सभी बातों को  ...
जब मैं  ,
अपनी तक़दीर से जोड़ कर देखता हूँ
तो दिल पूछता है  ...
तुम मेरी क्या लगते हो  ...
क्या कहकर पुकारूँ तुम्हें  ...
तुम ही बतादो ना  ...
#सारस्वत
18101990

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

धवलपुंज ...

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मानव ने नियम बनाये है 
नियम से मानव निर्मित नहीं 

गर्व आत्मसम्मान का प्रतीक है 
दंभ स्वाभिमान का पोषक नहीं 

वाद वैचारिक उद्घोषक है 
विवाद विचारों का घोतक नहीं 

अंतर्मन में मनन की ऊर्जा है 
मनमर्दन में मंथन का कमल नहीं  

तेज़स आत्मा का धवलपुंज है 
ध्यानज्ञान  से तेज़ का संबंध नहीं 
#सारस्वत 
11102015 

याद आते हो ...

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यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूलेसे भूला नहीं इतना याद आते हो

खोया रहता हूँ हर दम तेरे ख्यालों में
ढूंढा करता हूँ तुम को इन दलानों में
ना पूछ किस कदर तुझमें उलझा हूँ
तुम ही तुम रहती हो मेरे सवालों में
जब भी आते हो याद बहुत सताते हो
यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूले से भूला नहीं  …
सर्द मौसम में खिले रूप के चश्में
तपती दुपहरी में चढ़ी धूप की रस्में
हाय !! चश्में बददूर तुम्हारी वो हसी
फ़िज़ा से खेलती हुई रेशम जुल्फें
हर एक रंग में खूब रंग ज़माते हो
यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूलेसे भूला नहीं  …
भीगा रहता हूँ बेशरम प्यारी बारिश में
सरे पाँव रहता हूँ तर खुमारिश में
मनचला बनके फितूर जानेजाँ तेरे लिये
फिर से मचले है रोज़ ख्वाईश में
हर घडी हरेक पल तुम याद आते हो
यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूलेसे भूला नहीं  …
#सारस्वत
11102015 

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

सपना कोई आया

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आँख खुली तो याद आया
रात में सपना कोई आया

दिन गुजारा शागिर्दी में
दिल की  … बैठ कर
फिर जो तेरी याद आई
दिल धड़का  … मुस्कुराया

सूरते-हाल बाज़ार का
सुकून ना दे सका जरा
जो था नज़र की नज़र
नज़र को नज़र नहीं आया

बंद पलकों में भी
छेड़ा तूने तराना प्यार का
हाँ !! अख़बार की सुर्ख़ियों में
अक़्स नक़्श तेरा लहराया

‪#‎सारस्वत‬
04102015

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

आजा मितरा ...

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पूरब से चलकर पश्चिम तक , लालिमा आ गई है मितरा
सफर दैनिक आदित्य श्री , आज फिर समपूर्ण हुआ मितरा
आजा मितरा  ...

संध्याबेला में लौटने लगें हैं , पक्षीझुण्ड वापस नगरकोट को
तू भी आ जा अपने घर को , तेरी राह निहारे आँगन मितरा
आजा मितरा  ...

दुःख के बादल छट जायेंगें , गले मिल कर जब बिसरायेंगें
थम जायेंगीं तपिश तरंगें , प्रभात सुनहरी आएगी मितरा
आजा मितरा  ...

आसमान देखो ढलने लगा है , हवायें मद्धम पड़ने लगी हैं
सांसे घुलकर गलने लगीं हैं , मिलन पुकारे अंतिम मितरा
आजा मितरा  ...

#सारस्वत
25082015 

सुर्खियां ...


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फ़सल की देखकर बर्बादी 
चुल्ल्हे ठंडे पड़ गये थे 
किसान ने आत्महत्या कर ली  
लुट गए हम , सूदखोर बता रहे थे 
धीरे धीरे भीड़ बढ़ रही थी 
कैमरे सुर्खियां चमका रहे थे 
मंच फूलों से सजा हुआ था 
नेता जी क्रीज़बंद दमक रहे थे 
मरने वाले की आत्मा को 
शांति चैक दिया जा रहा था 
पास में ही , गाँव के दूसरे छोर पर  
बाकि बचे जिन्दा कर्जदारो को 
नोटिस थमाया जा रहा था 
#सारस्वत 
01052015