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मेरे हाथ में आज ,
कागज़ और क़लम है ...
'मगर,
नहीं मालूम क्या लिखूं
वो , जो ...
तुम्हारी आँखों में अक्सर मैं देखता हूँ
या फिर वह ,
जो शायद तुम ...
मेरी निगाहों में पढ़ लेती होंगी
जी चाहता है ,
उन तमाम रातों का बयाँ करूँ ...
जिन्होंने ,
बंद पलकों में ...
दस्तक देकर जगाया
या फिर जब ,
तारों की वादियों में मुझे ...
एक चाँद और नज़र आया
सपनों की हक़ीक़त , बुनियाद ढूंढ़ती रही ...
ख़्वाबों में मुलाक़ात , ज्यूँ ज्यूँ बढ़ती रही ...
या , मैं करूँ ज़िक्र ...
उन चंद मुलाकातों का ...
जिनकी बस यादें अधिक हैं
वो हसी ,
जो ओठों पर थिरकती है ...
या फिर ,
वो ख़ुशी जो आँखों से छलकती है
और इन सभी बातों को ...
जब मैं ,
अपनी तक़दीर से जोड़ कर देखता हूँ
तो दिल पूछता है ...
तुम मेरी क्या लगते हो ...
क्या कहकर पुकारूँ तुम्हें ...
तुम ही बतादो ना ...
#सारस्वत
18101990
मेरे हाथ में आज ,
कागज़ और क़लम है ...
'मगर,
नहीं मालूम क्या लिखूं
वो , जो ...
तुम्हारी आँखों में अक्सर मैं देखता हूँ
या फिर वह ,
जो शायद तुम ...
मेरी निगाहों में पढ़ लेती होंगी
जी चाहता है ,
उन तमाम रातों का बयाँ करूँ ...
जिन्होंने ,
बंद पलकों में ...
दस्तक देकर जगाया
या फिर जब ,
तारों की वादियों में मुझे ...
एक चाँद और नज़र आया
सपनों की हक़ीक़त , बुनियाद ढूंढ़ती रही ...
ख़्वाबों में मुलाक़ात , ज्यूँ ज्यूँ बढ़ती रही ...
या , मैं करूँ ज़िक्र ...
उन चंद मुलाकातों का ...
जिनकी बस यादें अधिक हैं
वो हसी ,
जो ओठों पर थिरकती है ...
या फिर ,
वो ख़ुशी जो आँखों से छलकती है
और इन सभी बातों को ...
जब मैं ,
अपनी तक़दीर से जोड़ कर देखता हूँ
तो दिल पूछता है ...
तुम मेरी क्या लगते हो ...
क्या कहकर पुकारूँ तुम्हें ...
तुम ही बतादो ना ...
#सारस्वत
18101990
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