गुरुवार, 27 नवंबर 2014

गुंज उठा फिर मंगल गान















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श्री राम चन्द्र को देख सिया ने , माँगा गौरी से वरदान
सियावर बने प्राणों से प्यारे , बने रामचन्द्र अभिमान
बने श्री रामचन्द्र अभिमान
बने मेरा रामचन्द्र अभिमान
गौरी ने ली सिया के मन की , मन मुस्काई पिया के मन की
सिया से बोली भाग्य सजेगा , दशरथ नंदन तेरा बनेगा
दशरथ नंदन तेरा बनेगा
दशरथ नंदन तेरा बनेगा
शुभ आशीष दिया माता ने , श्री राम बनें सिया सम्मान
जनकसुता जान जानकी , राम ही होंगें जानकी प्राण
राम ही होंगें जानकी प्राण
राम ही होंगें जानकी प्राण
फिर हुई तैयारी धनुष यज्ञ की , और राम बने सिया अभिमान
सियाराम हुऐ एकोतनमन प्राण , सियावर राम बने सिया के मान
गुंज उठा फिर मंगल गान
गुंज उठा फिर मंगल गान
एकसूत्र हुऐ सिया और राम,  बीजमंत्र हुआ सियाराम का नाम
सियाराम नाम करे जगत गुणगान , श्री राम बने सिया सम्मान
गुंज उठा फिर मंगल गान
गुंज उठा फिर मंगल गान
गुंज उठा फिर
मंगल गान
#सारस्वत
14041994 

शनिवार, 8 नवंबर 2014

आशिको की बस्ती












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ये इश्क की गलियां हैं , आशिको की बस्ती है 
वक्त भी ठहर जाता है , यहाँ की रोंनके देख कर 

दिल धडकता है यहाँ , ख्वाईशें जवान होती है 
इबारते लिखी जाती है , मोहब्बत को देख कर 
ये इश्क की गलियां हैं ...
जिन्दगी की चाह में , यहाँ बर्बाद हुए कई लोग
लुट गई रियासते कई , यहां दिल की मुंडेर पर 

ये इश्क की गलियां हैं ...
झील सी आँखों से यहाँ , बचा कोई नही कभी
डूब के जाना कोई , अश्के समन्दर को देख कर 

ये इश्क की गलियां हैं ...
ये इश्क का मोहल्ला है , दीवानों की बस्ती है
जरा होश में आना यहाँ , दिल देख भाल कर 

ये इश्क की गलियां हैं ...
#सारस्वत

14072013

शनिवार, 1 नवंबर 2014

जल्दी के साथ में
















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वक्त के लिये आज
मेरे पास वक्त नहीं है 'के,
बैठूं दो घडी वक्त के पास में
कल वक्त के पास में
मेरे लिए वक्त नहीं होगा
फूँक देगा जब मुझे
वक्त का गुलाम जल्दी के साथ में
खुद को पता नहीं
कितना चल पाऊँगा कदमों के साथ में
मालूम नहीं मुझे
कहाँ तक जाउँगा वक्त के साथ में
बस दौड़ा जा रहा हूँ
बेमकसद सा मकसद की तलाश में
भाग रहा हूँ मतलब सा
इतिहास लिखने की चाह के साथ में
ख्वाइशों की
पोटली बांध रक्खी है पास में
पल भर का पता नहीं
और सोचता हूँ वक्त गुलाम है मेरा
जबकि जनता हूँ
फूँक देगा मुझे
वक्त का गुलाम जल्दी के साथ में
#सारस्वत
14102014