गुरुवार, 31 दिसंबर 2015

आओ कुछ देर बात करते हैं ...

#
आओ आज कुछ देर खुद के साथ बैठते हैं
इस वर्ष किया क्या हमने बात करते हैं
आओ आज कुछ देर  ...
जो वादे किये थे उन वादो का क्या किया
जो दावा किया था उस दावे का क्या हुआ
ख्वाईश बतला रहे थे क्या वो पूरी हो गई
वो फरमाइशें लम्बी चौड़ी कहां तक पूरी हुई
कुछ सपने बुने थे बताओ ना क्या हुआ
कुछ ख्याली पुलाव बताओ ना क्या हुआ
रंग भरी जिंदगी में तमन्नाओं के साथ
अब भी जागते हो क्या सारी सारी रात
जो उम्मीदों की बैसाखी पर टिके थे इरादे
कुछ तो बताओ यूँ चुप ना बैठो शहज़ादे
उठा पटक तो चलती रहती है जिंदगी में
दिल खोल कर बताओ सभी की जाँच करते हैं
आओ आज कुछ देर  ...
 कल वादो का दिन है जी भर कर वादे करना
नई उम्मीदें आशाओं भरी नये ख्वाइशें करना
वादे मत करना खुद से भी पूरे ना कर पाओ अगर
कारण कुछ भी रहा हो मत लगाओ कोई अगर मगर
चलना हौसलों को साथ लेकर  नये इरादो के साथ
मंजिलें और भी हैं दुनियां में इसी विश्वास के साथ
बहुत उड़ चुके हो तुम अबके ज़मीन पर उतर आना
घर परिवार के साथ बुनियाद के साथ जुड़ जाना
मानता हूँ जाओगे तुम नये वर्ष में हमेशा की तरहा
लेकिन वर्तमान की ऊगली पकड़ कर हमेशा की तरहा
परेशान मत होना चला जायेगा ये भी साल इसी साल
किसने रोका है दिल खोल कर तुम घोषणाऐं करना
वक़्त हो चला है अब विदाई का शुभकामनायें करते हैं
आओ आज कुछ देर  ...
#सारस्वत
31122015 

बुधवार, 30 दिसंबर 2015

रिश्ते और रास्ते ...


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रिश्ते और रास्ते सभी को याद रहते हैं 
हादसे जिन्दगी के कभी भूल नहीं पाते हैं 
रिश्ते और रास्ते  ...
अजनबी से लोग अनजाने से मोड़ पर
मिलते हैं बतियाते हैं अपने बन जाते हैं
रिश्ते और रास्ते  ...
खासम ख़ास दिल के क़रीब दावा ऐ दोस्त 
उन्ही रास्तों से निकलकर दूर चले जाते है 
रिश्ते और रास्ते  ...
दुखता हैं टूटता है जी जीभर कर रोता है 
घुटता है जी जब रिस्ते हुये रिश्ते पाते हैं 
रिश्ते और रास्ते  ...
बिछुड़ने का गम और मिलने पर ख़ुशी 
रास्ते जिन्दगी के भी रिश्ते खूब निभाते हैं 
रिश्ते और रास्ते  ...
#सारस्वत
27032014 

शनिवार, 26 दिसंबर 2015

अलविदा दोस्तो ...


#
अगर 
वक्त हो पास में तुम्हारे तो , 
बैठो जरा पास मेरे 
घडी दो घडी का मेहमान हूँ 
चला जाउंगा फिर , तुम्हारे दरवाज़े से 
यादों में बस जाने से पैहले 
मुझे भी जीना है , जी लेने दो पल दो पल 
तुम्हारे साथ में 
मेरी भी बहुत सी मीठी यादें हैं 
होली पे भांग संग हमने खाई थी 
दीवाली रौशनी करके मनाई थी 
फिर खुशियों में वो आग लगी 
दुश्मनी गॉव तलक जा पहुंची 
रिश्ते सारे दंगों के नाम हो गए 
मजहबी राजनीती के सब हवाले हो गये 
मिटटी की खुशबु में जहर घुल गया 
नफरत के बीज सियासत बो गई  
अगर 
संवेदनाये ख़त्म ना हुई अभी भी 
तो फिर किसी के जाने के गम में 
अब रोते क्यों नहीं है यहां के लोग 
प्यार मोहब्बत को भुलाकर 
नफ़रत को क्यों सीने से लगा रहे हैं लोग 
मुझे अब जाना होगा 
मैं जा रहा हूँ हमेशा के लिए 
समय ख़त्म होने को है 
नवअंकुर आने को है 
लेकिन 
अपनी गलतियों के लिए कभी भी 
मुझको बदनाम मत करना 
आने वाले कल के लिए 
दो पल सोचना दुआ करना 
तुम्हारे साथ गुजरे दिन 
हमेशा याद रहेंगे मुझे 
जब चाहो आवाज देकर बुलाना 
तुम्हारी ही यादों का जखीरा 
साथ लेकर आ जाऊंगा 
तुम्हारे दरवाजे 
तुम्हारा अपना 
"गुजरता हुआ साल " 
अलविदा दोस्तो 
‪#‎सारस्वत‬ 
312013

गुरुवार, 24 दिसंबर 2015

भारत रत्न

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विप्र विभूति 
माँ भारती के दो लाल रत्न 
भारतीय राजनीति के 
शलाका पुरुष और अजात शत्रु 
व्यवहार कौशल नीति कूटनीति के 
अभिज्ञान शीर्ष शिखर 
अमुल्य बहुमूल्य सांस्कृतिक संरक्षक 
संस्कृति के अनमोल रत्न 
दोनों राष्ट्रपुरोधाओं का 
चंदन वंदन अभिनंदन
भारत माँ के रत्न
'भारत रत्न'
भारतवर्ष 
#सारस्वत 
25122014

बुधवार, 23 दिसंबर 2015

वक़्त ...

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अमीर हो या ग़रीब वक़्त है सभी के लिए
राजा रंक कुछ नहीं वक़्त की नज़र के लिए

बदलना शौंक गिरगिट का फितरत के साथ में
वक़्त बदला ना बदलेगा कभी किसी के लिए

शतरंज की चाल नहीं चलता वक़्त कभी भी
वक्त तो आईना दिखाता है सम्भलने के लिए

वक़्त की मुट्ठी में बंद हरेक सवाल का ज़वाब
तेरे लिए कुछ मेरे लिए कुछ इतिहास के लिए

वक्त के पास लिखा रक्खा है सभी का हिसाब
फुर्सत किसे है लेकिन देखने समझने के लिए
#सारस्वत
22012014

गुरुवार, 17 दिसंबर 2015

यही काफी है मेरे लिए ...

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उसूलों ने साथ निभाया , यही काफी है मेरे लिए
पहचान खुद की बचा लाया , यही काफी है मेरे लिए

मुट्ठी भर आसमान 'वो भी , फिसलता जा रहा था
उम्मीदें कुछ बचा लाया , यही काफी है मेरे लिए

क़दमों के नीचे से ज़मीन , खिसकती जा रही थी
बुनियाद ही बचा पाया , यही काफी है मेरे लिए

अपनों ने जब देखा था , हिकारत की नजर से
एक चिराग रोशनी लाया , यही काफी है मेरे लिए

बेईमानो की बेमानी सी , इस दोरंगी दुनियाँ से
ईमान बचा ले आया , यही काफी है मेरे लिए

इंसान का इंसान होना , अब गुनाह सा हो गया
मैं इंसान ही बन पाया , यही काफी है मेरे लिए
#सारस्वत
26112013

सोमवार, 14 दिसंबर 2015

सुनो ...



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हाथों की लकीरों में , ना ढूंढा कर मुझे 
बंद मुट्ठी में मिलता हूँ , हौसला कहते हैं मुझे 

मुझसे ना पूछा कर , दुनियादारी का सबक़ 
ईमानदारी रक्खा कर , समझदारी कहते हैं मुझे 

मैंने देखा आईने में , सूरत के अलावा कुछ ना था 
तूने किसको देखा बता , ज़मीर कहते हैं मुझे 

मना करने पर भी तूने , फ़रेब से दोस्ती कर ली 
दाग़ अपने तक रखना , दामन कहते हैं मुझे 

वादे ना किया कर , इंतजार को गुलामी कहते हैं 
इरादे किया कर , वफा का एतबार कहते हैं मुझे 

शक़ की गुंजाईश हो कहीं तो , रुखसती ले लेना 
रिश्तों की ईबादत हूँ  , यक़ीन कहते हैं मुझे 

पुरखों ने कमाया है जिसे , मैं वो दौलत हूँ 
सम्भाल कर रखना , इज़्ज़त कहते हैं मुझे 
#सारस्वत 
14122015 

शनिवार, 12 दिसंबर 2015

खबर कर दो ...

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अभी ज़िंदा हूँ मैं 
खबर कर दो , दिवानों को सियासतदानों को 
बादलों की चालों से 
सूरज ढला नहीं करते , बता दो नाफ़र्मानों को 
बादलों की चालों से ,
सूरज ढला नहीं करते  ... 

मायूस ना हो 
ऐतबार ना बदल , आयेगा मौका भी आज़माइशों का 
इरादे पुराने चावल हैं  
हौसले मचलते फड़कते हैं , रौशनी तो पहुंचे अतिशदानों को 
बादलों की चालों से 
सूरज ढला नहीं करते  ... 

बैठ कर आसरे 
मुकददर के , हासिल को नहीं होता कभी कुछ हासिल 
तोड़ दो सहारे 
किनारों के किनारे , होश से भरदो सागर पैमानों को 
बादलों की चालों से 
सूरज ढला नहीं करते   ... 

नई सुबह से पहले 
अँधेरा छटने से पहले , आती है उम्मीद जगाती है सबको 
अलसुबह होगई , 
मौसम आज़माने को , इंकलाब आने को है बतादो नौजवानों को 
बादलों की चालों से 
सूरज ढला नहीं करते   ... 
#सारस्वत 
12122015 

मंगलवार, 8 दिसंबर 2015

झूठ सच हो चूका

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झूठे का झूठ नगरसेठ , धनवान हो चूका है
सत्य का सत्य निर्धन , गुमनाम हो चूका है
झूठ का झूठ नगरसेठ ...

रुख हवा का बता रहा , अभिमान का तिलक
अर्थ का अर्थ स्वार्थ से , पुरुस्कृत हो चूका है

आत्मसम्मान के गुम्बद की , झुक गई है क़मर
स्वार्थ सिद्धि को प्राप्त कर , परिष्कृत हो चुका है
झूठ का झूठ नगरसेठ ...

झूठ ने कर दिखाया , कीर्ति स्तम्भों का निर्माण  
घुट्टी में पिलाया गया , गबरु जवान हो चूका है
झूठ का झूठ नगरसेठ ...

सच्चाई के साथ में , प्रकाश अब चलता नहीं है
रोशन गलियों से सच का , बहिष्कार हो चूका है
झूठ का झूठ नगरसेठ ...

नगर खुशामदी राह पर , उन्नत विकसित होंगे
देख कर हश्र सत्य का , विवेक मौन हो चुका है
झूठ का झूठ नगरसेठ ...
#सारस्वत
08122015

गुरुवार, 26 नवंबर 2015

प्यार ...

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प्यार को प्यार से प्यार का आकार दो 
प्यार के अक्षांस को प्यार से सवाँर दो 

आशाओं को मिलेगी आकांक्षाओं की ओस 
अनुनय विनय को आलिंगन का हार दो 

प्रणय पुष्प पल्ल्वित होंगे ह्रदय पटल पर 
नेह से देह को स्नेह स्निग्ध उपहार दो  

भाव संग जगमग करेगी भावना की लौ 
प्रेम की रीत को प्रीत सा विस्तार दो 

#सारस्वत 
27112015 

26/11














#

भूला नहीं जाता  ...

उस रात का मंज़र !

26/11 आती है ...

नाला छूट जाता है !! 

‪#‎सारस्वत‬ 

26112014

सोमवार, 23 नवंबर 2015

शुन्य का आदि ना अंत कोई

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शुन्य तो शुन्य ही होता है
शुन्य का आदि ना अंत कोई
शुन्य का पूरब न पश्चिम कोई
शुन्य का उत्तर ना प्रश्न कोई

विलुप्त संस्क्रती की प्रहरी
संभावनाओ की शुन्यता
म्रत सम्वेदनाओं की देहरी
भाव शुन्य योग शुन्यता
शुन्य तो शुन्य ही होता है
शुन्य का आदि ना अंत कोई

मर्म के बिना धरम शुन्य
कर्म के बिना इंसान शुन्य
रिश्तो के बिना पहचान शुन्य
जीवन म्रत्यु श्मशान शुन्य
शुन्य तो शुन्य ही होता है
शुन्य का आदि ना अंत कोई

शुन्यता में प्रक्रति का उद्गम है
शुन्यांश में श्रष्टि का चिन्तन है
शुन्यांक ध्यान का है चरम बिंदु
शुन्य विज्ञानं का आत्म मंथन है
शुन्य तो शुन्य ही होता है
शुन्य का आदि ना अंत कोई

शुन्य ज्योति है रौशनी है
शुन्य ज्ञान की साधना है
शुन्य रसायन निशब्द है
शुन्य रस है उर्जा है ॐ है
शुन्य तो शुन्य ही होता है
शुन्य का आदि ना अंत कोई

#सारस्वत
06102013

मंगलवार, 10 नवंबर 2015

ह्रदयमन्दिर में दिपोतस्व


#
ह्रदय मन्दिर में मनोवेग कलश स्थापित कीजिये  
दीपक राग अनुराग से अंतर्मन सुसज्जित कीजिये 
ह्रदय मन्दिर में  ...
मन की माला सृजित होवे स्नेह की पंखड़ियों से 
मनकी मुंडेरों पर धवल ज्योति प्रकाशित कीजिये 
ह्रदय मन्दिर में  ...
अंतर्मन की कंदराओं से शकशंकाओं को बिसराइये 
नेहपुष्प प्रेमदीप सघन सुरंगों तक प्रसारित कीजिए 
ह्रदय मन्दिर में  ...
प्रेम प्यार सौहार्द भाष्य उज्ज्वल प्रफुल्लित होगा 
निश्छल निर्मल ज्योतिर्पुंज सर्वत्र प्रज्वलित कीजिये 
ह्रदय मन्दिर में  ...
भाव से प्रभाव से हर संभव समभाव की दीप श्रंखला 
माँ भारती के श्रीचरणों में प्रेमप्रीत समर्पित कीजिये 
ह्रदय मन्दिर में  ...
#सारस्वत 
10112015 

बुधवार, 4 नवंबर 2015

सच बोल रहे हो ना

#
तुम लालची हो क्या  ?
नहीं तो  ...
सच बोल रहे हो  ...
हाँ  ...
फिर ये पुरुस्कार क्यों सजा रक्खा है अलमारी में  ??
ये सम्मान के लिए मिला था  ...
अच्छा !!  … कितना सम्मान मिल रहा है  ???
कुछ नहीं पड़ोसी भी दोगला बताते हैं
बोलो सम्मान चाहिए क्या , नाम के साथ में  ????
हाँ चाहिए तो
तो आजा हमारे साथ में  ... भेज दे वापस ,
पुरुस्कार को दे के तलाक ... देखना फिर ,
अख़बार टीवी सब जगह  ....
होगा तेरा ही जलवा  !!!!
तुम डरते हो क्या ?
नहीं तो
सच बोल रहे हो ना
हाँ
तो बोलते क्यों नहीं ??
क्या
असहिष्णुता
#सारस्वत
04112015 

सोमवार, 2 नवंबर 2015

मैं आज़ाद हूँ - लाइव मूवी


#
बरसों पहले मूवी आई थी 'मैं आज़ाद हूँ'

जिसमें शबाना पत्रकार का किरदार निभाती है
पत्रकारिता के व्यवसाईकरण से छुब्द होकर
आर्टिकल के रूप में अपना भावी स्तीफा लिखती है
26 जनवरी को आज़ाद मुंबई की सबसे बड़ी बिल्डिंग से
कूदकर आत्महत्या कर लेगा
यहां पर  …
शबाना अपनी पत्रकारिता का हुनर दिखती है
अपने इस्तीफ़े को कलम की आज़ादी बताकर
कलम का नाम आज़ाद रखती है
मतलब  क्या निकला  …
26 जनवरी को शबाना अपनी पत्रकारिता की कलम को
मुंबई की सबसे बड़ी बिल्डिंग से निचे फैंक देगी
और उसके बाद क्या दिखाया जाता है  …
मुंबई से साथ में पूरे भारत में अराजकता का माहोल
उसके बाद  … गुमनामी से अमिताब को ढूंढ कर
उस का आज़ाद नाम रक्ख दिया जाता है
फ़िल्म हम सभी की देखी भाली है  …
आज कल ये मूवी लाइव चल रही है  …
यही दोहराया जा रहा है देश में  …
24 घंटे 24 रिपोर्टर
मैं क़लम 'आजाद' के साथ
महान देश
भारत से
#सारस्वत
02112015 

रविवार, 1 नवंबर 2015

कभी ...

#
कभी धडकन को छुआ ख़ामोशी ने लिपटे के
तो कभी धडकन ने सुना सूनेपन को सिमट के

कभी गहरे उतरे यादों के समन्दर में नहाने
तो बैठ गये कुये के कुये रिश्ते हुए रिश्तों के
कभी धडकन को छुआ  ...

कभी पैबंद लगी बातों का चला रतजगा सा
तो कभी टाट के झोंके दस्तक देते ख्वाबों के
कभी धडकन को छुआ  ...

कभी दरिया जा ठहरा नाजुक की आँखों में
तो कभी बारिश बेमौसम झीलों में पलकों के
कभी धडकन को छुआ  ...
#सारस्वत
02 06 2013

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

साथ चलेंगे ...

#
साथ चले हैं साथिया  … साथ चलेंगे
रिश्ता जन्म जन्म का   … साथ चलेंगे
 
जब से जाना है अपना तुमको माना है ,
दरिया से सागर तक … साथ चलेंगे

थम कर हाथ विश्वास के साथ में
एहसास की धारा में  … साथ चलेंगे

घुल जाओ मिल जाओ सांसों में यूँ ही
प्रेम प्यार पियतम स्पर्श  … साथ चलेंगे

चाँद के साथ में तारो जड़ी रात में ,
चलो चाँद को देखने … साथ चलेंगे

#सारस्वत
11102014

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

प्राणिमात्र का धर्म

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धर्म की जय हो  ...
अधर्म का नाश हो
प्राणियों में सद्भावना हो  ...
विश्व का कल्याण हो
#
यह वह ब्रह्म सूत्र है  …
जो धर्म की व्याख्या करता है
प्राणिमात्र का अर्थ हुआ  …
अंतिम व्यक्ति तक सभी में सद्भाव का भाव
जिसका मतलब हुआ  …
ऊंच नीच छोटा बड़ा अपना परया कुछ नहीं
सभी के लिए सभी की सोच में …
सभी के ह्रदय में अंतर्मन में मानवीय सोच रखना
चराचर संसार के  …
समस्त जीव निर्जीव के कल्याण की कामना करना
मन के मनके का यही धर्म है …
मन के अवयव मानव का यही धर्म मानवीय धर्म हैं
#
जो भी धर्म इस रस्ते चलेगा  …
सैदेव समान भाव से युगों युगों तक चलता चलेगा
क्योंकि इस भावना में  …
विस्तारवादी कुत्सित कुटिल इच्छाएं नहीं होती
जरूरी नहीं के यह सुत्र  …
केवल हिन्दू सनातनी  वैदिक ही अपना सकते हैं
जब भी  …
जो भी सभ्यता इस गुण सूत्र को अपनाएगी
समाज के पुनुरुत्थान के लिये  …
मानव मात्र की चिंता में संलग्न हो जाएगी
स्वतः
वैदिक सनातनी हो जायेगा
धर्म की जय हो  ...
विश्व का कल्याण हो
हरि बोल
#सारस्वत
23042015 

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

लिखना होगा ...

#
किस्से कहानियों को अब नए सिरे से लिखना होगा
मर्द जात की नामर्दी को स्वर्णाक्षर में लिखना होगा

औरत आज भी अबला है मंगल विजयी भारत में
बहन का रक्षक भाई नहीं आज का सच लिखना होगा

कभी कोख में मार डालते कभी दहेज की बलिवेदी पर
नहीं सुरक्षित बहु बेटियां साथ गर्व के लिखना होगा

भूलाना होगा पर्व भैया दूज रक्षा बंधन त्योहारों को
करो भ्रूण बेटी की हत्या ये कानून में लिखना होगा

बहुत पुराना राग तुम्हारा नारी नारी की दुश्मन है
बाप बेटी के हत्यारे हैं बेटे को घमंड ये लिखना होगा
#सारस्वत
26112014

शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

तुम ही बतादो ना ...

#
मेरे हाथ में आज  ,
कागज़ और क़लम है  ...
'मगर,
नहीं मालूम क्या लिखूं
वो , जो  ...
तुम्हारी आँखों में अक्सर मैं देखता हूँ
या फिर वह  ,
जो शायद तुम  ...
मेरी निगाहों में पढ़ लेती होंगी
जी चाहता है ,
उन तमाम रातों का बयाँ करूँ  ...
जिन्होंने ,
बंद पलकों में  ...
दस्तक  देकर जगाया
या फिर जब ,
तारों की वादियों में मुझे  ...
एक चाँद और नज़र आया
सपनों की हक़ीक़त , बुनियाद ढूंढ़ती रही  ...
ख़्वाबों में मुलाक़ात , ज्यूँ ज्यूँ बढ़ती रही ...
या , मैं करूँ ज़िक्र  ...
उन चंद मुलाकातों का  ...
जिनकी बस यादें अधिक हैं
वो हसी ,
जो ओठों पर थिरकती है  ...
या फिर ,
वो ख़ुशी जो आँखों से छलकती है
और इन सभी बातों को  ...
जब मैं  ,
अपनी तक़दीर से जोड़ कर देखता हूँ
तो दिल पूछता है  ...
तुम मेरी क्या लगते हो  ...
क्या कहकर पुकारूँ तुम्हें  ...
तुम ही बतादो ना  ...
#सारस्वत
18101990

रविवार, 11 अक्तूबर 2015

धवलपुंज ...

#
मानव ने नियम बनाये है 
नियम से मानव निर्मित नहीं 

गर्व आत्मसम्मान का प्रतीक है 
दंभ स्वाभिमान का पोषक नहीं 

वाद वैचारिक उद्घोषक है 
विवाद विचारों का घोतक नहीं 

अंतर्मन में मनन की ऊर्जा है 
मनमर्दन में मंथन का कमल नहीं  

तेज़स आत्मा का धवलपुंज है 
ध्यानज्ञान  से तेज़ का संबंध नहीं 
#सारस्वत 
11102015 

याद आते हो ...

#
यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूलेसे भूला नहीं इतना याद आते हो

खोया रहता हूँ हर दम तेरे ख्यालों में
ढूंढा करता हूँ तुम को इन दलानों में
ना पूछ किस कदर तुझमें उलझा हूँ
तुम ही तुम रहती हो मेरे सवालों में
जब भी आते हो याद बहुत सताते हो
यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूले से भूला नहीं  …
सर्द मौसम में खिले रूप के चश्में
तपती दुपहरी में चढ़ी धूप की रस्में
हाय !! चश्में बददूर तुम्हारी वो हसी
फ़िज़ा से खेलती हुई रेशम जुल्फें
हर एक रंग में खूब रंग ज़माते हो
यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूलेसे भूला नहीं  …
भीगा रहता हूँ बेशरम प्यारी बारिश में
सरे पाँव रहता हूँ तर खुमारिश में
मनचला बनके फितूर जानेजाँ तेरे लिये
फिर से मचले है रोज़ ख्वाईश में
हर घडी हरेक पल तुम याद आते हो
यादसे याद नहीं कितना याद आते हो
भूलेसे भूला नहीं  …
#सारस्वत
11102015 

रविवार, 4 अक्तूबर 2015

सपना कोई आया

#

आँख खुली तो याद आया
रात में सपना कोई आया

दिन गुजारा शागिर्दी में
दिल की  … बैठ कर
फिर जो तेरी याद आई
दिल धड़का  … मुस्कुराया

सूरते-हाल बाज़ार का
सुकून ना दे सका जरा
जो था नज़र की नज़र
नज़र को नज़र नहीं आया

बंद पलकों में भी
छेड़ा तूने तराना प्यार का
हाँ !! अख़बार की सुर्ख़ियों में
अक़्स नक़्श तेरा लहराया

‪#‎सारस्वत‬
04102015

शनिवार, 3 अक्तूबर 2015

आजा मितरा ...

#

पूरब से चलकर पश्चिम तक , लालिमा आ गई है मितरा
सफर दैनिक आदित्य श्री , आज फिर समपूर्ण हुआ मितरा
आजा मितरा  ...

संध्याबेला में लौटने लगें हैं , पक्षीझुण्ड वापस नगरकोट को
तू भी आ जा अपने घर को , तेरी राह निहारे आँगन मितरा
आजा मितरा  ...

दुःख के बादल छट जायेंगें , गले मिल कर जब बिसरायेंगें
थम जायेंगीं तपिश तरंगें , प्रभात सुनहरी आएगी मितरा
आजा मितरा  ...

आसमान देखो ढलने लगा है , हवायें मद्धम पड़ने लगी हैं
सांसे घुलकर गलने लगीं हैं , मिलन पुकारे अंतिम मितरा
आजा मितरा  ...

#सारस्वत
25082015 

सुर्खियां ...


#
फ़सल की देखकर बर्बादी 
चुल्ल्हे ठंडे पड़ गये थे 
किसान ने आत्महत्या कर ली  
लुट गए हम , सूदखोर बता रहे थे 
धीरे धीरे भीड़ बढ़ रही थी 
कैमरे सुर्खियां चमका रहे थे 
मंच फूलों से सजा हुआ था 
नेता जी क्रीज़बंद दमक रहे थे 
मरने वाले की आत्मा को 
शांति चैक दिया जा रहा था 
पास में ही , गाँव के दूसरे छोर पर  
बाकि बचे जिन्दा कर्जदारो को 
नोटिस थमाया जा रहा था 
#सारस्वत 
01052015 

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

बनारस मूर्ति विसर्जन

#
तुम कूड़ा फेंको कचरा कर दो गंगाजी को शान से 
गणपति जी को लाओगे तो जाओगे तुम जान से 

हवनकुंड की मिटटी लाये दण्ड पिलेगा समझ लो तुम 
पुजा की सामग्री संग आये लठियायेंगें समझ लो तुम 
धरम करम पर फूल चढाने अफ़सर आये हैं ठान के 
गणपति जी को लाओगे तो  ...
रोग रसायन मिलों की गाद गिरती है तो गिरने दो 
बूचड़खाने पशुधन काटो और गंद गंगा में बहने दो 
नदियों में सीवर का पानी चलो डालो सीना तान के 
गणपति जी को लाओगे तो  … 
#सारस्वत 
24092015 

शनिवार, 12 सितंबर 2015

बहुत दूर निकल गया


#
बहुत दूर निकल गया हूँ 
घर का रस्ता भूल गया हूँ 
बहुत दूर … 

छत चौबारे संकरी गलियाँ 
नीम के पेड़ की निम्बोलियाँ 
पीपल की छाँव गेहूं की बालियाँ 
भूल भुलैईया में भूल गया हूँ 
बहुत दूर … 

मिटटी की खुशबू गन्ने का खेत 
फिरकी चकरी कुश्ती लमलेट 
बेफ़िक्री की कुदान बोली में ठेठ 
भागदौड़ में सबकुछ भूल गया हूँ 
बहुत दूर …

वो कच्ची पगड्ण्डीयों पे चलना 
वो डोल पर लापरवाह सा बैठना 
वो देर रात गाँव का फेरा लगाना 
शहर के नक़्शेक़दम में भूल गया हूँ 
बहुत दूर … 

#सारस्वत 
10042014

बुधवार, 9 सितंबर 2015

शांति की ख़ोज निरंतर जारी है


#
अंतर्मन मंथन की यात्रा पर है 
शांति की ख़ोज निरंतर जारी है 
#
कभी शब्दों को शब्द नहीं मिलते 
कभी ओठ चाहकर नहीं खुलते 
अकाल पर अकाल भारी हैं 
शांति की ख़ोज  ...
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रिश्तों के रिश्ते रिस्ते हुये बंधन 
फिरभी विषधर लपेटे वृक्ष है चंदन 
तृष्णा बुँदे भी पलकों पर आरी हैं 
शांति की ख़ोज  ...
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तेज़ बिखराया है धूपिया रंगों में 
दर्द समाया है रेत के टीलों में 
मरुस्थल में मृगतृष्णा तारी है 
शांति की ख़ोज  ... 
#सारस्वत 
09092015

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

ध्यान का मतलब क्या होता है

#ध्यान_का_मतलब_क्या_होता_है 
अगर नहीं जानते तो  … 
तो फिर सोचिये  … ध्यान का मतलब क्या होता है 
समझने की कोशिश कीजिये  … ध्यान का मतलब क्या होता है 
और जब तक समझ में ना आये  … ध्यान का मतलब क्या होता है 
तब तक जानने की कौशिश करते रहिये  … ध्यान का मतलब क्या होता है 
यक़ीन मानिये  … मैं जानता हूँ आप समझदार हैं 
लेकिन समझदारी दिखाने की कोशिश  … ध्यान के लिये बेकार है 
ध्यान का मतलब क्या होता है 
जानने के लिये  … 
आप किसी से भी सहायता नहीं ले सकते 
शुल्क अथवा निशुक्ल  कोई परामर्श ले दे नहीं सकते 
कृपया पेट में मरोड़ मारने बंद कीजिये क्योंकि  … 
सुझाव पेटिका पूर्णतः वर्जित हैं 
बहुत ही साधारण सा कार्य मिला है आपको 
ध्यान के ध्यान में ध्यान मग्न होना है आपको 
अब ध्यान के सभी प्रश्नों के उत्तर दक्खिन 
स्वम आप सभी ध्यान के विद्यार्थीयों को तलाशने हैं 
बस यही ध्यान है 
शुभकामनाओं के साथ 
आपका शुभिच्छुक 
ध्यान के ध्यान में एक ध्यान 
#सारस्वत 
08092015 

"चुनावी दंगल"


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हो गया है श्रीगणेश चुनावी दंगल का 
शुरू करो अभियान चुनावी दंगल का 
चारे का नया पेड़ उगाओ लालटेन जलाकर 
करो सत्य धराशाई दौड़ की दौड़ में आकर 
मत बैठो खुश होकर खाली गठजोड़ बिठाकर 
लक्ष्य साधो अपना नित नये तीर चलकर 
गिरगिट की कला में माहिर श्रीमन जी श्रेष्ठ 
शुरू करो अभियान मंगल सुमंगल का 
शुरू करो अभियान चुनावी दंगल का  … 
भक्तों की भीड़ देखकर घबरा मत जाना 
तीरंदाजों से तुम भी जयकारा लगवाना 
जीत जायेंगें फिर से मुकाबला है पुराना 
शागिर्दों से कहदो बस जमकर जोर लगाना 
दोबारा होगा चंदन भुजंग जंगल का 
शुरू करो अभियान चुनावी दंगल का  … 
पाटलिपुत्र में होगा राज फिर से जंगल का 
#सारस्वत
200182015  

रविवार, 6 सितंबर 2015

मैं ही तो हूँ


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जल में थल में नभ में पवन  में  … मैं ही तो हूँ 
फूल में पौधे में जीव में निर्जीव में  … मैं ही तो हूँ 

ईश्वर कहो परमेश्वर कहो या जो तुम्हारी मर्जी कहो 
पितामह कहो या परम पिता मानो   … मैं ही तो हूँ 
अनन्त आकाश से लेकर सूक्ष्मतम कण तक सब 
मन के अवयव मानव तुझमें भी तो  … मैं ही तो हूँ 
स्थल देवस्थल जो निर्माण किया तूने श्रद्धा भाव से  
स्थापित या विथापित यत्र तत्र सर्वत्र … मैं ही तो हूँ 
ज्ञान में विज्ञानं में मनन मंथन और संज्ञान में 
बोध के सम्बोधन में आत्मा और अंतर्मन में  … मैं ही तो हूँ 

मैं ही तो हूँ  … देखता रहता है जो हर क्षण मानव का चरित्र 
मैं ही तो हूँ  … देता रहता हूँ कर्म के हिसाब से सज़ा विचित्र
मैं ही तो हूँ  … जिसने बनाया शून्य नगण्य धन्य का चित्र 
मैं ही तो हूँ  … भूत भविष्य मान सम्मान पिता पुत्र पितृ 
मैं ही तो हूँ  … जिस ने कहा कुरुक्षेत्र में गीता ज्ञान पवित्र 
मैं ही तो हूँ  … जीव जन्म की तूलिका मोक्ष मृत्यु सचित्र
मैं ही तो हूँ  … समयकाल महाकाल विकराल और मित्र 
#सारस्वत 
18101996 

शुक्रवार, 14 अगस्त 2015

वन्देमातरम

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"वन्देमातरम"
माँ भारती की वंदना है … वन्देमातरम 
मातृभूमि की प्रदक्षणा है … वन्देमातरम
वन्देमातरम ... वन्देमातरम ...
वन्देमातरम ...
शक्ति का वरदान है … वन्देमातरम 
शस्त्र के समान है … वन्देमातरम
धनुष का बाण है  … वन्देमातरम 
सर्वशक्तिमान है  … वन्देमातरम 
वन्देमातरम ... वन्देमातरम ...
वन्देमातरम ...
सिंह की दहाड़ है  … वन्देमातरम 
वीरता का नाद है  … वन्देमातरम 
क्रांति का प्रमाण है  … वन्देमातरम 
शौर्य का बखान है  … वन्देमातरम
वन्देमातरम ... वन्देमातरम ...
वन्देमातरम ...
जाग्रत प्रण प्राण है  … वन्देमातरम 
केसर तिलक समान है  … वन्देमातरम 
आन बान शान है  … वन्देमातरम 
आत्मसम्मान है  … वन्देमातरम 
वन्देमातरम ... वन्देमातरम ...
वन्देमातरम ...
‪#‎सारस्वत‬
14082015

मंगलवार, 11 अगस्त 2015

ग़म का लिहाफ़ ओढ़ कर

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ग़म का लिहाफ़ ओढ़ कर ग़म , सुकून की नींद निचोड़ा करते हैं
सपनें आते हैं कुछ खुशियां लेकर , जिन को हम बटोरा करते हैं

नई सुभह के साथ में अंगड़ाई , मुस्कराहट की लेकर उठना तुम
उदासी के दीये को जलने दो , सूर्य किरण पर यही सकोरा करते हैं

टूटी हुई खिड़कियों से कैहदो , चंदन रातों में कोई जौरशौर ना करें
थके हारे झोंके यहां आकर , अक्सर आराम का थोरा करते हैं

कल पूछूंगा तबियत से हाल , कैसी गुजरी रात बरसात के साथ
बेफिक्री से सोना अभी तुम , हम छत टपकने पर कटोरा करते हैं

#सारस्वत
11082015

शनिवार, 1 अगस्त 2015

ब्रह्माण्ड का स्वर ॐ


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ब्रह्माण्ड का स्वर ॐ है 
आदि अनादि ॐ ही ॐ है 
ॐ प्रकृति है ॐ संस्कृति है 
चेतन अवचेतन ॐ ही ॐ है

ॐ जल है ॐ तल है 
ॐ पवन है ॐ गगन है 
जीव का जी ॐ सजीव निर्जीव है 
सर्वत्र प्रभामंड़ल में ॐ ही ॐ है

ॐ चिंतन है मनन है मंथन है 
ॐ किर्या है कारक है परिवर्तन है 
नव सृजन का घर्षण समर्थन है 
ॐ के सम्बोधन में ॐ ही ॐ है

ॐ साक्ष्य है शिक्षा है समीक्षा है 
ॐ पुण्य है परीक्षा है प्रतीक्षा है 
धैर्य है धर्म है कीर्तन का मर्म है 
सर्वज्ञ सत्य की दीक्षा ॐ ही ॐ है

ॐ सुर है स्वर है ध्वनि है 
ॐ खरल है गरल है अग्नि है 
यज्ञ के उच्च में जग समुच्चय में 
भस्म में वर्तनी में ॐ ही ॐ है

कालखण्ड का काल ॐ है 
पतित पावन नटराजन ॐ हैं 
कणकण में अणु परमाणु में 
सर्वकालिक अनन्तनाद ॐ ही ॐ है 
23052014

रविवार, 12 जुलाई 2015

बारिश के मौसम में




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मैंने पूछा गगन से आज दिन नहीं निकला 
वो हसकर बोला बस उजाला नहीं निकला 

लगता है मौसम आज बारिश का देख कर 
भीगने के डर से सूरज घर से नहीं निकला  

मुंह चिड़ाने लगे मेरा रस्सी पर लटके कपड़े 
जब छतरी को लेकर मैं आँगन में निकला 

गली में देखा छोटे बच्चे चिल्लाये जा रहे थे 
कागज़ की नाँव का देखो मौसम आ निकला

कच्ची दीवारों में फिर आकर बैठ गया है डर 
जबसे सुना है बादल फिर पानी लेकर निकला 

पहली बारिश में ही समुन्दर बन गया है शहर 
कश्तियाँ उतारो सड़क पर है रस्ता नया निकला 
#सारस्वत 
12072015 

गुरुवार, 9 जुलाई 2015

अक्सर अँधेरी रातों में

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यहां मैं और वहां चाँद
अक्सर अँधेरी रातों में
चाय की प्यालियों में डूबकर
जागा करते हैं रात भर
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कभी तोड़ते हैं खुशियों की गुल्लक
बाँट लेते हैं खुशियाँ आधी-आधी
अश्क़ों की बारिश में कभी कभी 
तकियों को नम करते हैं भिगोकर 
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हँसते हैं , गाते हैं , गुनगुनाते हैं
और कभी-कभी शरमाते भी हैं
यूँ ही एक दूसरे की बातों में
बिता देते हैं रात सारी घर से बेघर
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दुश्मन हैं लेकिन सुबह की किरणें
कर देती हैं हम दोनों को अलग 
चाँद छुप जाता है कहीं बादलों में
फिर मिलने का वादा लेकर देकर
#सारसवत
30082012 

शनिवार, 4 जुलाई 2015

टूटती सांसों के साज़

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टूटती सांसों के साज़ 
रात की तन्हाई में सुनाई देते हैं 
दिल के धड़कने की आवाज़
जब कोई सुनने वाला नहीं होता 

तारों सितारों का रुआब भी 
उम्मीद का दीदार नहीं कराता 
सन्नाटा चीर कर जाता है 
जब नज़ारे सब डूब जाते हैं 

खामोशी ठहर जाती है आँगन में 
मातम पसर जाता है दामन में 
जिसवक़्त वक़्त की बदली पर 
पतझड़ का मौसम झूम के आता है 

वीरानियाँ लेती हैं अंगड़ाई 
ख्वाइशें दम तोड़ने लगती हैं 
जब सोई हुई यादें पलटकर 
अचानक ज़ख्म उधड़े दिखाती हैं 

पलकों से छलक कर दो आंसू 
बंद हो जाती हैं सदा के लिये 
दम तोड़ देती है जिंदगी 
मौत शहनाई बजाती है 
#सारस्वत 
04072015 

मंगलवार, 30 जून 2015

जुदाई के बंदझरोखे से

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जुदाई में भी हम कहाँ    जुदाई देखते हैं
हम यादों के सफ़र में   तुझको देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

वफ़ा के नाम पर      जला कर के कंदील
उम्मीदों भरी सुबहा की     हम राह देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

दिल ने वादा किया है      चलो निभाएंगें
उठ कर बैठो     बंदझरोखों में क़रार देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

ऐहसास के लिये      विश्वाश का होना जरूरी है
बेयक़ीनी से लोग हैं     यक़ीन में यक़ीन देखते हैं
जुदाई में भी हम कहाँ ...

दावे कहते हैं     दुनियां की परवाह नहीं जरा
और धड़कते दिल में    खुद ही फ़र्के जुबाँ देखते हैं
#सारस्वत
30062015

पांच तत्वों की निर्जीव देह


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मत पूछ बाद मुक्ति के मन मुक्त तन किधर जायेगा 
पांच तत्वों की निर्जीव देह को पुनः पंचतत्व मिल जायेगा 

सनातनी के प्रारब्ध में शुभ होती है शमशान की यात्रा 
म्रत शरीर पूर्णाहुति स्वरूप अग्नि को समर्पित हो जायेगा 

मृत्यु लोक में जीवन सुधा की संध्या आरती है मोक्ष 
नश्वर आत्मा को प्राण प्रिय नव तन पर्ण मिल जायेगा  

प्रथम चरित्र की समीक्षा तदेन कर्मों की गणना होगी 
क्रमानुसार अंकुरित जीव को नवजीवन उपलब्ध हो जायेगा 

जीवनचक्र विखंडन सृजन की परिक्रमा का ही नाम है 
जन्मोंजन्म श्रंखलाबद्ध अनुबंदित शुद्धकमल खिल जायेगा    
सादर वंदन
#सारस्वत 
24062015

सोमवार, 29 जून 2015

ये मृत्यु लोक है


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सजीव जीव जीवंत सर्वश्रेष्ठम 
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जन्म के साथ ही मृत्यु भी निश्चित है 
ये मृत्यु लोक है यही शाश्वत है सत्य है 
ये मृत्यु लोक है  … 
जन्म से मृत्यु के सफर का नाम है जीवन 
प्रत्येक जीव की कहानी का यही सत्य है 
ये मृत्यु लोक है  … 
जीव में जीवित जीव संजीवन है आत्मा 
मृत्यु का आलिंगन तो अंतिम सत्य है 
ये मृत्यु लोक है  … 
आत्मा का पुनर्जन्म मृत्यु का मोक्ष है 
काया की माया का दिविज़ ही सत्य है 
ये मृत्यु लोक है  … 
आगम निगम संगम विखंडन प्रदक्षणा 
कृत्य अणु परमाणु का प्रमाणिक सत्य है 
ये मृत्यु लोक है  … 
आत्माविहीन दुब है भस्मि रूप शव 
जन्म जीवन मृत्यु अटल सत्य है
ये मृत्यु लोक है  … 
सादर वंदन
#सारस्वत 
29062015