शनिवार, 1 अगस्त 2015

ब्रह्माण्ड का स्वर ॐ


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ब्रह्माण्ड का स्वर ॐ है 
आदि अनादि ॐ ही ॐ है 
ॐ प्रकृति है ॐ संस्कृति है 
चेतन अवचेतन ॐ ही ॐ है

ॐ जल है ॐ तल है 
ॐ पवन है ॐ गगन है 
जीव का जी ॐ सजीव निर्जीव है 
सर्वत्र प्रभामंड़ल में ॐ ही ॐ है

ॐ चिंतन है मनन है मंथन है 
ॐ किर्या है कारक है परिवर्तन है 
नव सृजन का घर्षण समर्थन है 
ॐ के सम्बोधन में ॐ ही ॐ है

ॐ साक्ष्य है शिक्षा है समीक्षा है 
ॐ पुण्य है परीक्षा है प्रतीक्षा है 
धैर्य है धर्म है कीर्तन का मर्म है 
सर्वज्ञ सत्य की दीक्षा ॐ ही ॐ है

ॐ सुर है स्वर है ध्वनि है 
ॐ खरल है गरल है अग्नि है 
यज्ञ के उच्च में जग समुच्चय में 
भस्म में वर्तनी में ॐ ही ॐ है

कालखण्ड का काल ॐ है 
पतित पावन नटराजन ॐ हैं 
कणकण में अणु परमाणु में 
सर्वकालिक अनन्तनाद ॐ ही ॐ है 
23052014

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