रविवार, 3 अक्तूबर 2021

रिश्तों से रिश्ते ...

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रिश्तों से .. रिश्तें ... रिसने .. लगे हैं
पलकों में .. पल के ...  पीसने .. लगे हैं
दिलों में दिलों के , मोहब्बत नहीं अब
धुंए की शकल में , सिरहाने .. लगे हैं
रिश्तों से .. रिश्तें ...
नक्शों के नक़्शे ... उतरे से .. हुए हैं
जुल्फों में फसे से ...  उलझे से हुए हैं
फ़िकर है फ़िकर की , फिक्रमंद हूं मैं
नज़र में नज़र के , नज़रबंद लगे हैं
रिश्तों से .. रिश्तें ... रिसने .. लगे हैं
पलकों में .. पल के ...
बसर में असर बाकी , है रंजिशों का
उमर पे उमर का , नशा गफ़लती का 
दुआ में दुआ का , असर अब नहीं है
दुआ की दीवारों पे , जाले लगे हैं
रिश्तों से .. रिश्तें ... रिसने .. लगे हैं
पलकों में .. पल के ...
बिछुकर के मिलना , ये मिलना है कैसा
रंज तो बहोत है ,पर ...ये  रंज भी है कैसा
जिकर के ज़िकर में , है ज़िकर ख़ामोश
सब ज़िकर के बहाने से, आज़माने लगे हैं
रिश्तों से .. रिश्तें ... रिसने .. लगे हैं
पलकों में .. पल के ...
#सारस्वत 06022013