मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

विजय ...

#
यादों में ज़िंदा हो , जिंदगी सा नज़र आते क्यों नहीं हो 
धड़कनों में रहते हो , सामने नज़र आते क्यों नहीं हो 
बहुत दिन हो गये , साथ बैठ कर बात  नहीं की तूने  
नाराज़ हो !! नाराज़गी सही , बात करते क्यों नहीं हो 
जागता हूँ अब रातों को , नींद मुझको  भी आती नहीं 
सितारों में ढूंढ़ती हैं ऑंखें , दिखाई देते क्यों नहीं हो 
उदासी पसरी है देखलो , बंज़र हो गया घर का मंज़र 
बन के झोंका हवा का , तुम लौट आते क्यों नहीं हो 
#सारस्वत 
18122018 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें