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यादों में ज़िंदा हो , जिंदगी सा नज़र आते क्यों नहीं हो
धड़कनों में रहते हो , सामने नज़र आते क्यों नहीं हो
बहुत दिन हो गये , साथ बैठ कर बात नहीं की तूने
नाराज़ हो !! नाराज़गी सही , बात करते क्यों नहीं हो
जागता हूँ अब रातों को , नींद मुझको भी आती नहीं
सितारों में ढूंढ़ती हैं ऑंखें , दिखाई देते क्यों नहीं हो
उदासी पसरी है देखलो , बंज़र हो गया घर का मंज़र
बन के झोंका हवा का , तुम लौट आते क्यों नहीं हो
#सारस्वत
18122018
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