गुरुवार, 5 दिसंबर 2013

जीवनरूपी पाठशाला में

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ज्ञान आंकलन "परिशिष्ट " के
विशिष्ट "प्रतिनिधि" के समक्ष

शब्दज्ञान "परीक्षण" में
"प्रतिशोध" की उत्पत्ति
शोषण के प्रतिस्वर क्रोध से होती है
समाज में
जाति रंग अथवा
जीवनयापन शैली का
अपमान ना हो
इसलिए
निगरानी "निरीक्षण" की
"विशेष" आवश्यकता प्रतिक्षण रहती है
सम्मान की अभिलाषा तो
"गर्दन" पर टिके प्रत्येक मस्तिष्क का
जन्मजात अधिकार है
दिपावली का "दीया" यही लौ जगाता है
मन अभिव्यक्ति
विचार कल्पनाये
शाब्दिक प्रारूप "प्रतिबिम्ब"
शैक्षिक अनुसंधान
शिक्षण "प्रशिक्षण"
जीवनरूपी पाठशाला में
निरंतर चलायमान रहे
इसके लिए आवश्यक है
चेतना पटल के तोरणद्वार
जिज्ञासु पुष्प माला एवं
चिंतन "आम्रपल्लव" से
"पुष्पित" रहें
अंतर्मन जागृत न हो तो
मायारूपी असुर "हिरण्याक्ष"
ज्ञानवान को भी मूढ़ बना देता है
अतः
आवश्यक है
जीवन कलश के ह्रदय क्षेत्र में
धर्मसंगत सांस्कृतिक ज्योतिर्पुंज
निरंतर प्रजव्लित रहे
#सारस्वत
05122013 

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