गुरुवार, 1 जनवरी 2015

बारिश की सरगम प्रभात















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भोर ने पूछा  …
प्रभात से इशारों के साथ में ,
सूरज नहीं आया आज धुप के साथ में
कोहरे की चादर में  …
लिपटा ... सिपटा ...बमुश्किल सा ,
प्रभात !!!
ओस की बूंदों सा मुस्कुराया
सर्दी का मौसम  ...
और , ये मदमस्त हवायें  ...
बुँदे   ...
टपक रही हैं ... रुनझुन फर्श पर ,
बारिश ने नहालाया है ...
आज तो सारा शहर ,
सांसों को सोने दो
ख्वाबों  के कारवाँ , साये के साथ में
सूरज को  ...
सुनाने दो दिलों की दास्तान ,
रहने दो  ... छाया के साथ में  ,
भौर मुस्कुराई ...
दिन के दरवाजे तक आई ...
मन ही मन बड़बड़ाई ...
ऐरी बावरी !!!
उजाले को ही उठा दे कोई ....
मगर  …
रौशनी ने अनसुनी कर दी , ये बोल कर ...
मुझे सोना है  , उजाले के साथ में ...
और वो  ...
आँखें बंद कर लेटी रही ,
अपनी मोहब्बत के साथ में  ...
प्रियतम की स्निग्ध सांसें ,
महसूस करती रही खुली बाँहों में ...
तूफान  ...
थमने का नाम नहीं ले रहा ...
बारिश में नहाया है झमाझम शहर  ...
बूंदें टपक रही हैं फर्श पर ...
सूरज भी दूर तक नहीं आता नजर  ...
सूरज भी  ...
दूर तक नहीं आता नजर
शुभदिनसुन्दरहो
#सारस्वत
02012015

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