रविवार, 14 सितंबर 2014

हिंदी की प्रगति में










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मातृभाषा के तिलक से 'हिंदी, मात्र भाषा हो गई
निज भाषा उन्नति अहै के ,शब्द सार्थक हो गऐ
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आकांक्षा अभिलाषा का , इच्छा दान कर दिया
ज्ञान के समर्थक विदूषक , मूड धन्य हो गऐ
निज भाषा उन्नति अहै के  ...
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लालच लिप्सा से सरल ,आसान भूमि से ज़मीन
अर्थ के सब अर्थ बदले , वित्त समर्थक हो गये
निज भाषा उन्नति अहै के  ...
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हिंदी की प्रगति में , चन्द्र सुर्य भी चाँद सुरज हुऐ
अग्नि आग - रात्रि रात ,लब्ज़ शब्द सार्थक हो गऐ
निज भाषा उन्नति अहै के  ...
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भाषाई विवाद में सिकुड़ी हिंदी सिमट के रह गई
प्रगति की राह के राही , घटक परिवर्तक हो गऐ
निज भाषा उन्नति अहै के  ...
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पंजाब सिंधु गुजरात मराठा द्रविड़ उत्क्ल बंग
हिंदी विरोधी भाषा-भाषी , क्षेत्रप मस्तक हो गए
निज भाषा उन्नति अहै के  ...
#सारस्वत
14092014 

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