#
तस्वीर लिए हूँ हाथों में तकदीर ढूंढ रहा हूँ
भारी मन है भावुक तन है तदबीर ढूंढ रहा हूँ
जाने कितने दिन गुजरे हैं जाने कितनी ... रातें
पतझड़ के आँगन में अंबर सावन का ढूंढ रहा हूँ
तस्वीर लिए हूँ हाथों में ...
भीड़ में होकर भी भीड़ में खोकर भी ... इकला
बन कर हिस्सा भीड़ का खुद को ढूंढ रहा हूँ
तस्वीर लिए हूँ हाथों में ...
अंदर अंदर उबल रहे हैं सुलगते कुछ ... सवाल
आधे अधूरे जीवन के हल मुश्किल ढूंढ रहा हूँ
तस्वीर लिए हूँ हाथों में ...
तन्द्रा ना टूटी नींद ना छूटी झूठी रूठी ... सांसें
स्वप्न सुनहरे जीवन में मृगतृष्णा ढूंढ रहा हूँ
तस्वीर लिए हूँ हाथों में ...
#सारस्वत
21062016
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें