शुक्रवार, 4 नवंबर 2016

यही कड़वा सच है ...


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सच सुनने की ख़्वाइश रखते तो हैं
लेकिन  ...
झूठ के बड़े वाले समर्थक हो गये हैं
यही कड़वा सच है  ...
आज  ...
सुबहा की ही बात है , मैंने दूधिये से कहा  ...
आजकल दूध में पानी ज्यादा होता है
दूधिया मुस्कुरा कर बोला  ...
60/- रूपये में और क्या जान लोगे दूधिये की
मैंने उसकी तरफ देखा  ...  और बडबडाया
तुम्हारी बात भी सही है
बात कुछ नहीं है  ...
और है भी बहुत कुछ  ...
सच से ऑंखें फेरनी सीखली हम सभी ,
झूठ के बड़े वाले समर्थक हो गये हैं
यही कड़वा सच है  ...
कल  ...
सब्ज़ी बाज़ार में खीरे वाले से पूछ बैठा
खीरे देसी या जर्सी
वह चिढ़कर बोला  ... मीठे हैं
देसी कड़वे खीरे कौन खाता है आजकल
मैंने उसकी तरफ देखा  ...  मुस्कुराया और बुदबुदाया
तुम्हारी बात भी सही है
स्वाद के नाम कैमिकल सटकाने लगे हैं
ज़हर का चटकारा लगाने लगे हैं
तुम भी चुप हो मैं भी चुप हूँ
तुम खुश हो मैं भी खुश हूँ
इस नकली झूठे मुख़ौटे के साथ में
सच पूछो तो ,
झूठ के बड़े वाले समर्थक हो गये हैं
यही कड़वा सच है ...
सच हज़म होता नहीं , हाजमें की बात करते हैं
घी मक्ख़न में मुश्क बताकर , पैकिट का डकारते हैं
भुलाकर नीम पीपल बरगद , चिंता पर्यावरण की करते हैं
डालकर नदियों में फैक्टरियों का कचरा , प्रदूषण की बात करते हैं
आओ सब मिलकर सेहत खराब करते हैं
कोई बात नहीं  ...
चलो फिर से  ...
हम ना बदलेंगें ये हमने सोचा है
ना तुम बदलना मैं बदलूंगा
झूठ को बुरा भला कहते रहेंगे
सच्चाई को दबाते भुलाते रहेंगे
फिकर करने वाली कोई बात नहीं है
झूठ के बड़े वाले समर्थक हो गये हैं
यही कड़वा सच है ...
#सारस्वत
04112016 

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