सोमवार, 19 दिसंबर 2016

तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई ... शिकवा ... तो नहीं ...

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कुछ दिन पहले रजनीश भाई मेरे पास
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई  ... शिकवा  ... तो नहीं ...
आंधी फ़िल्म के गुलज़ार जी के लिखे गीत को लेकर आये और दो अलग अंतरे लिखने को कहने लगे , पहले मैंने उनकी बात को मज़ाक समझा मगर रजनीश भाई जोर देकर कहने लगे लिखने ही पड़ेंगें मैंने कहा मेरे आदर्श हैं उनकी लेखनी की धार के पर जाना मुमकिन ही नहीं नामुमकिन है , लेकिन वह ज़िद पर अड़े रहे ऐसे में मेरे जैसे नासमझ से जो बन पड़ा वह आज यह लिख आप सभी के समक्ष लिखने की धृष्टता कर रहा हूँ । उम्मीद करता हूँ मेरी इस गलती को गुलज़ार जी उदंड शिष्य समझकर माफ़ करेंगें #सारस्वत
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तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई  ... शिकवा  ... तो नहीं ...
शिकवा ..नहीं ... शिकवा नहीं ...शिकवा नहीं ...
तेरे बिना ज़िन्दगी भी लेकिन , ज़िन्दगी  ... तो नहीं,
ज़िन्दगी  .. नहीं  ... ज़िन्दगी नहीं ...
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई ...  शिकवा  ...
*
कोहरा फैला है  ...
धुआं शक्लें हैं  ... लिपटी हैं यादें तेरी
आता  ... नज़र कुछ नहीं
तन्हां सी रातों में  ...
चुभती सी यादें की
साथ   ...हैं बातें तेरी
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई  ... शिक़वा  ...
शिकवा ..नहीं ... शिकवा नहीं ...शिकवा नहीं ...
*
तुमको देखा तो  ...
चश्में उल्फ़त के  ... खुद से रौशन हुए
ख्वाइशें  ...फिर  ज़िंदा हुई
लकीरें हाथों की  ....
हाथों से मिलकर भी
मिलती क्यों नहीं
तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई  ... शिक़वा तो नहीं
शिकवा ..नहीं ...
#सारस्वत
18122016

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