#
कमरा तो …
बेटी मुझको भी नहीं मिला मेरा कभी
शादी हुई …
पति के कमरे में समा गईं थी तभी
आज तक …
उसी बिस्तर को साझा करती आई हूँ
जन्म तेरा …
वहीं हुआ ममतामई गोद मेरी वहीं भरी
आज भी …
वहीं रहती आई हूँ जहाँ माँ तेरी कहलाई हूँ
तक़दीर तेरी …
कुछ जुदा नहींं क़िस्मत तेरी भी मुझसी
यहां लिखा …
है नाम तुम्हारे पिता का ही घर के आगे
वहां लिक्खा …
तेरे पति का होगा तेरी क़िस्मत के आगे
कच्चे धागों …
की डोर से बंधें है रिश्ते औरत जात के
तेरी मेरी …
कहानी की यहां नहीं कोई गवाही है
तेरी मेरी …
कहानी की यहां नहीं कोई सुनवाई है
#सारस्वत
23022015
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें