शुक्रवार, 5 जून 2015

धरा पे फिर बहार हो

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वृक्ष हों घने घने  , छाँव से सने सने
स्वप्न है साकार हो , धरा पे फिर बहार हो

फूल हों खिले खिले , हों बेलपत्र हरे भरे
लता पे भी निखार हो , धरा पे फिर बहार हो

पवन चले झूमती , कलियों को चूमती
भवरों में खुमार हो , धरा पे फिर बहार हो

ओस की बून्द हो ,  अधखुली सी नींद हो
आस की उम्मीद हो , धरा पे फिर बहार हो

चिड़ियों का हो आगमन , चहकता हो ये चमन
खिलती हुई फुहार हो , धरा पे फिर बहार हो

जल तरंग संग चले , निश्चल सरल बह चले
नदी का तट समग्र हो , धरा पे फिर बहार हो
#सारस्वत
05062015


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