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मिलना किसी रोज़ ...
मिलना तुम , ऐ जिंदगी फुर्सत के साथ में ।
देखना !!
क्यों नहीं मिलती , मोहलत जिम्मेदारी के साथ में ।।
प्यासे को पानी ...
खुद पीना पड़ता है , बस इतना समझ लो ।
निवाला !!
तलक नहीं जाता , खुद चल कर मूंह के पास में ।।
मिलते तो हैं ...
इस दुनियां के लोग , चाहे मतलब से मिलते हैं ।
वैसे !!
वक्त ही कहाँ मिलता है , यहाँ कभी वक्त के साथ में ।।
आसान तो यहाँ पर ...
कुछ भी नहीं है , जिंदगी जीने के वास्ते ।
जीतकर !!
हारा हूँ रोज़ , झूठसच की लड़ाई में बड़ाई के साथ में ।।
#सारस्वत
01092017
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