रिश्तों में रिश्ते रिसने लगे हैं
पलकों में पलके पीसने लगे हैं
फ़िक्र है फ़िक्र की फिक्रमंद हूँ मैं
नज़र में नज़र के नज़रबंद लगे हैं
दुआ में दुआ सा वो असर अब नहीं
दुआओं की दीवारों पे ज़ाले लगे हैं
ज़िक्र के ज़िक्र में हुआ ज़िक्र ख़ामोश
अक़्स नक्स ज़ुल्फ़ें जब उतरने लगे हैं
दाव पर लगा दी यहां तमाम ज़िन्दगी
दावेदार अभीतक आज़माने में लगे हैं
दिलों में दिलों के अब मोहब्बत नहीं है
धुंये की शकल में सब सिरहाने लगे हैं
#सारस्वत
06022013
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