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खोने को रोज़ एक दिन खो देता हूँ
पाने को एक नया दिन पालेता हूँ
खोने को रोज़ खोता हूँ मैं खुद को
पाने को रोज़ नाक़ामी पालेता हूँ
कुछ भी नही बदला सब रोज़ सा
वही दिन का आना रात का जाना
सुभहा शाम गम से गप्पे लड़ना
ना कुछ नया पाया ना ही खोया
सिवाय इस गुजरते हुऐ वक्त के
जो गया साँसों से वापस ना आया
खुद का पता नही खुदा का क्या कहूँ
दहशत ना वहशत बस जिऐ जा रहा हूँ
14022014
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