सोमवार, 4 मई 2020

खैर से हूं ...


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गुजर जाता है
आधा लम्हा आँखों में
आधा लम्हों को ढूंढ़ने में
सलामत हूँ , खैर से हूं  ...
लगा हूँ ,
दोस्तों की खैर मांगने मेंⅱ

मिलकर भी ,
मिलते नहीं हो कभी
कैसे हो , 
खैरियत बताते नहीं कभी
गलती ,
हुई क्या कोई बड़ी  ...
हम से दुआ मांगने मेंⅱ

नराज़गियां ,
तो चलती रहेंगी
जब तलक है ये ज़िंदगी
शिकायते ,
कम नहीं हो जायेंगी
वक्त ,
खुदसे दो घड़ी का  ... 
हमारे लिए मांगने मेंⅱ

तबियत ,
जानने का हक  ...
हम भी नहीं रखते क्या 
या फिर तुम ही  ,
हो गए हो मंदिर के देवता
देता नहीं ,
जो प्रसाद कभी 
सीढ़ियों पर मांगने मेंⅱ
#सारस्वत 04052020 

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