ध्यानयोग में ही प्रेमयोग है
प्रेम योग में ही है साधना
साधना की आराधना में
स्वंभू समाहित है सौंदर्य कमल
एवं ऋतू चिरंजीव है विश्वात्मा
प्रेम के सरोवर में चाव ही चाव हैं
रस रसायन के भाव ही भाव हैं
प्रेम की परकोटि का रंग केसरी
प्रेम की परदक्षणा में भाव की पताका
एवं दशोदिशा चिरंजीव है विश्वात्मा
प्रेम के ताव में ओढ है ना प्रौढ़ है
उन्मुक्त आकाश का ग्रह निवास है
प्रेम की सरीता में हैं उच्छल तरंगें
अर्पण से समर्पण तक स्वप्निल
अमिट अटल चिरंजीव है विश्वात्मा
#सारस्वत 09052020
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