शुक्रवार, 15 मई 2020

#जो_जहां_हैं_वहीं_रहें_जीवन_है_जरूरी




रास्तों के पास में होती है
मंजिलों को पार करने की मंजूरी
चले जा रहे दिन रात
इसीसोच के साथ करते जो मजूरी
मोदीजी ने तो विनती की थी जोड़कर
सुना नहीं या सुनना चाहा नहीं
ऐसी भी क्या थी मजबूरी

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें