बुधवार, 23 अक्तूबर 2013

मुझे गिला नही कोई
















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मुझे गिला नही कोई 

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उसका मलाल मैं क्या करूं , जो कभी मेरा था ही नही 
जिसको जो अच्छा लगा कैह गया , मुझे गिला नही कोई 

मुट्ठी में बंद करता रहा मैं सपने , अपना समझ कर 
हकीकत की जमीन पर लेकिन , कोई अपना था नही
जिसके काँधे को मैंने रोने को , अपना तकिया समझा
उसके सीने में ना दर्द था मेरे लिए , ना अक्स मेरा कोई

खामखाँ मकां को लेकर लड़ते रहे , वो सब बेमतलबी
दुश्मनी का असल मकसद , जाहिर किया नही कभी
मेरे सीने में खंजर जिसने घोपा , हाथ वो भी मेरे ही थे
ये सिक्को की हिस्सेदारी में , अब सगा रहा नही कोई

बटवारा तो रिश्तों का था , माँ को वो दुनिया रास आई
यतीम हुआ तो मैं ही हुआ , मेरे हिस्से में दिवार आई
मैं टूट कर बिखरा हूँ ऐसे , जैसे बिखरा हो आइना कोई
शाख से टुटापत्ता हो कोई , जैसे माँ बाप रहा ना हो कोई
#सारस्वत
24092013

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