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मैं स्म्रति वन में ठहर गया
असुवन काजल पे ठहर गया
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खट्टी मिट्ठी यादों की क्यारी
कभी बचपन के गलियारों में
देह उडती पतंग के पँखों पर
मन सप्त रंग सा महक गया
मैं स्म्रति वन में ..
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कई त्रिष्णा झिलमिल हो उभरी
कहीं वेदना झुरमुट से निकली
झरझर रुनझुन बुँदों की बारिश
पल प्रतिपल अम्बर बहक गया
मैं स्म्रति वन में ..
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सुर मधुर थाप ह्रदय मन्दिर में
चली चली रे पवन फिर उडी धूल
हुआ शंखनाद चला सम्वाद चक्र
पंखुरी बन उपवन तन चहक गया
.मैं स्म्रति वन में ..
#सारस्वत
27092013
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