शनिवार, 19 जुलाई 2014

जिंदगी











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किस बेख्याली में जी रहा है तू जिंदगी
दोबारा मिलने वाली नहीं तुझे ये जिंदगी
किस बेख्याली में  …
खर्च करने से पहले सोच भी लिया कर
साँसो की उधारी पर जीता है तू जिंदगी
किस बेख्याली में  …
हासिल क्या होगा आईने को तोड़ कर
सुरत में नहीं है सीरत में है ये जिंदगी
किस बेख्याली में  …
तेरा ख्यालों की पतंगें उड़ाना फ़ुज़ूल है
हक़ीक़त की सख्त ज़मीन है ये जिंदगी
किस बेख्याली में  …
मायूसियों से मंजिलों का क्या है वास्ता
हौसलों से जीया तो जीत लेगा तू जिंदगी
किस बेख्याली में  …
#सारस्वत
19072014 

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