गुरुवार, 15 मई 2014

पंथ अनेक पथिक अनेको

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पंथ अनेक पथिक अनेको , अनगिनत पठ्येय
वर्ण ध्यान एक चितरंतर  , और एक है ध्येय
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आने को तेरे मन्दिर में , प्रभुः लाखों हैं द्वार
मनमष्तिष्क मानस पटल पर , है ऐक ही सार
उस श्र्द्धेय पथ को ज्ञान चक्षुः लेते हैं पहचान
पर्वत माला जिस मार्ग में , गीता वेद पुराण
भुला भटका सा ये राही , अब तक रहा है डोल
इस दुविधा में जाने कितने , द्वार चुका टटोल
हे प्रभु , बिना प्राप्त किये ,तेरा स्वछन्द संकेत
पा ना सकुंगा हे परवर , तेरा पुण्य निकेत
मै ना जानू मै क्या हूँ , मै ना जानू तू क्या है
मै ना जानू जीवनमृत्यु , मै ना जानू जग क्या है
मैं ना गया मँदिर सीढ़ी , मैं ना घुमा चारो धाम
गृहस्ती बंधन में उलझा हूँ , ये जीवन है संग्राम
सुखदुःख के जो बादल छाये , सब बातें बेमानी हैं
मै ना हारा तू ना जीता , जाँ भी तेरी दिवानी है
अब उम्र नहीं लम्बी मेरी , ना जाने कब ना कैहदे
अन्तिम छण है दीन बन्धु , मुझ्को भी कोई वर दे
मै भी पालुं परम परमातम , तेरा दर्शन श्रेय
वर्ण ध्यान एक चितरंतर  , यही एक है ध्येय
#सारस्वत
11052014 

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