रविवार, 18 मई 2014

तन्हाइयों से परेशांन हूँ













#
तन्हाइयों से परेशांन हूँ , फिर भी जीये जा रहा हूँ
मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ , यूँ ही जीये जा रहा हूँ
*
क्यूँ कुलबुलाते हैं दिल में ये अरमाँ
जब इनकी कोई भी मंज़िल नहीं है
लेता हूँ गैरों से अपने पे अहसाँ
क्यूँकि मेरा कोई , साहिल नहीं है
दुनिया के आगे पशेमांन हूँ , फिर भी जीये जा रहा हूँ
मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ , यूँ ही जीये जा रहा हूँ
*
मुझे अपनी साँसो से शिकवा ना होता
कभी कोई मुझसे मुहब्बत जो करता
अगर हमसफ़र कोई मेरा भी होता
क्यूँ मैं अकेले में घुट घुट के मरता
अपने मुकद्दर पे हैरान हूँ , फिर भी जीये जा रहा हूँ
मैं क्या करूँ कहाँ जाऊँ , यूँ ही जीये जा रहा हूँ
#सारस्वत
01021998  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें