शनिवार, 11 जनवरी 2014

मत पूछ

#

मत पूछ धड़कनों की तलब से
किस कशिश में ख्याल रोया है
तुझको दुआ में मांगने से पैहले
हमने खुद को अश्कों से धोया है
*
जब भी देखा हाथों की लकीरों को
हमने पाया मुकद्दर को सोते हुये
जब भी जगाया बुलाया तुझको
चाहतों ने हसरतों को भिगोया है
*
ख्वाइशें हैं के मिटती नहीं दिल की
जाने कब मौसमें हिज्र खत्म होगा
बस ! तेरे वादे इकरार की खातिर
पलकों ने भी इन्तजार को ढोया है

#सारस्वत
11012014



कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें