गुरुवार, 16 जनवरी 2014

ओ मितवा रे ....





ओ मितवा रे ....

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कच्ची उमर के कच्चे ख्याल
अधपके सपने जैसे सवाल
कच्चे पक्के अक्षर सारे
ओ मितवा रे ....

कद काठी काया का गैहना
सजन सावन धुप को सहना
सुख दुःख सारे , पीढ़ा से हारे
ओ मितवा रे ....

चाक पे चेहरा बन बन जावे
आस बंधावे साँस ना आवे
सब लिक्खे करमों के मारे
ओ मितवा रे ....

बन्द मुट्ठी का लाख सहारा
भेद ना जाना जग उजियारा
सूनी अखियाँ सुनापन तारे
ओ मितवा रे ....

#सारस्वत
16012014 

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