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जनता घुन बन कर पिसती है ,
रंग बदलती सरकारे
रंग बदलती सरकारे
कुर्सी के प्यारे नेता हैं …
सब की जीब चटोरी है ,
कुर्सी के बटवारे में
कुर्सी के बटवारे में
नेता को कुर्सी प्यारी है ,
सत्ता के गलियारों में
सत्ता के गलियारों में
कुर्सी के प्यारे नेता हैं …
खादी के मुंह में हड्डी है ,
नही कोई यंहा फिसड्डी
नही कोई यंहा फिसड्डी
सब लंगड़ी में अब्बल है ,
खादी की कबड्डी में
खादी की कबड्डी में
कुर्सी के प्यारे नेता हैं …
देश धर्म को भुला दिया ,
झंडे के लम्बरदारों ने
झंडे के लम्बरदारों ने
जनता को रोना सिख दिया ,
सत्ता के नाकारों ने
सत्ता के नाकारों ने
कुर्सी के प्यारे नेता हैं …
# सारस्वत
26012014
26012014
26012014
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